आंतकवाद यानि ऐसा वाद जिसे दिल और दिमाग से नहीं बल्कि बम और बंदूकों के दम पर फेलाया जाता है। धर्म कोई भी क्यों न हो वह आतंकवाद यानि कि दहशतगर्दी को इजाजत नहीं देता। किसी धर्म विशेष से आतंकवाद जैसे घिनोने कार्य को जोडऩा उचित नहीं है। इस्लाम धर्म की प्रमुख संस्थाएं दारूल उलूम देवबंद, आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और वक्फ दारूल उलूम...आदि सभी ने उत्तर प्रदेश के देवबंद शहर में आयोजित देश के सर्वोच्च इस्लामिक सम्मेलन में 'आतंकवाद' की सभी कार्रवाइयों को गैर धार्मिक होने के साथ ही ग़ैर इस्लामी भी कहा गया है।
ऐलाने इस्लाम: इस सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण घोषणापत्र भी पारित किया गया। दारुल-उलूम के आतंकवाद विरोधी सम्मेलन में भी सभी तरह की हिंसा और आतंकवाद की आलोचना करते हुए सर्वसम्मति से एक घोषणापत्र पारित किया गया। इस सम्मेलन में अनेक मुस्लिम विद्वानों, धार्मिक नेताओं और मौलवियों ने हिस्सा लिया। घोषणापत्र में कहा गया है-
'इस्लाम ऐसा धर्म है, जिसमें सभी के प्रति दया-दृष्टि रखी जाती है। इस्लाम सभी तरह की हिंसा, आतंकवाद और अत्याचार की कड़ी आलोचना करता है। इस्लाम में अत्याचार, धोखा, दंगा और हत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है।'
असली इस्लाम: घोषणापत्र को पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि इस्लाम भी हर तरह के हिंसात्मक कार्यों और दहशतगर्दी को पूरी तरह से इंकार करता है। घोषणापत्र में मुस्लिम विद्वानों से अपील की गई है कि वे इस्लाम को बदनाम करने वाले किसी भी कार्य का हिस्सा न बने और राष्ट्र विरोधी शक्तियों के प्रभाव में न आए। ख्यात मुस्लिम विद्वानों ने कहा कि इस्लाम प्यार और शांति का धर्म है और इसकी शिक्षाओं में आतंकवाद की कोई जगह नहीं है। क़ुरान की आयतों का हवाला देते हुए मुस्लिम विद्वानों ने कहा कि इस्लाम सभी लोगों के बीच समानता और करुणा की शिक्षा देता है।
धर्म में नही धर्म के ठेकेदारों में कमी है
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