स्टार न्यूज के कार्यकारी संपादक हैं।विजय जी से vijay.vidrohi@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है
मनमोहन सिंह सरकार आम आदमी के लिए जिन योजनाओं को शुरू कर रही है, उन पर हर साल करीब सवा लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं। मनरेगा पर इस साल करीब चालीस हजार करोड़ खर्च किए जाने हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून पर पचास से साठ हजार करोड़ रुपए हर साल खर्च होंगे। भले ही यूपीए सरकार इस बहाने अपने वोट बैंक को मजबूत कर रही हो, लेकिन इन योजनाओं के लिए रखे गए पैसे का लाभ वास्तव में गरीब जनता तक पहुंचे, इसे सुनिश्चित किस तरह किया जा रहा है, यह जानने का हक पूरे देश को है। देश जानना चाहता है कि कांग्रेस सरकार ने सवा लाख करोड़ रुपए की चौकीदारी की क्या व्यवस्था की है।
ऐसा होना इसलिए जरूरी है, क्योंकि मनरेगा या भोजन का अधिकार या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून जैसी योजनाएं बार-बार आने वाली नहीं हैं। हो सकता है कि 2014 में नई सरकार सत्ता में आए और योजनाओं का स्वरूप ही बदल डाले। देश इसलिए भी पाई-पाई का हिसाब जानना चाहता है। गरीबी दूर करने की इतने बड़े पैमाने पर जब पहल हुई ही है, तो यह पहल अंजाम तक पहुंचनी चाहिए। यह काम काफी हद तक सूचना का अधिकार कर सकता था। इसका कुछ हद तक असर भी हुआ है, लेकिन लगता है कि इस अधिकार से डरी केंद्र और राज्य सरकारें अब इस कानून को भोथरा बनाने में लगी हैं। पिछले दिनों सोनिया गांधी की मुलाकात सूचना के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाली अरुणा राय से हुई।
अरुणा दुखी थीं कि सूचना के अधिकार का गला घोंटा जा रहा है। सरकारी महकमों में घपले सामने आ रहे थे। नेता-अफसर सभी डरे हुए थे। उन्हें लगने लगा था फाइल पर कोई भी गलत नोटिंग आगे चलकर उन्हें पकड़वा सकती है, सूचना के अधिकार की चपेट में वे आ सकते हैं। यही वह मौका था, जब इस अधिकार को धार दी जानी चाहिए थी। नेता-अफसर की जवाबदेही तय की जानी चाहिए थी, ताकि योजनाओं के हिसाब-किताब में और ज्यादा पारदर्शिता लाई जा सके, लेकिन अफसोस ऐसा हो नहीं सका।
हैरत की बात है कि एक तरफ तो मनमोहन सिंह सरकार में ही कुछ ऐसे मंत्री हैं, जो गरीबों को दी जानी वाली सब्सिडी पर टेढ़ी नजर रखते हैं। उधर सोनिया गांधी की सलाहकार परिषद में शामिल अरुणा राय, ज्यां द्रेज और हर्ष मंदर जैसी शख्सियतें न केवल सब्सिडी बढ़ाने के पक्ष में हैं, बल्कि खर्च होने वाले पैसे की सोशल ऑडिट कराए जाने को भी बेहद जरूरी मानते हैं। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि सवा लाख करोड़ रुपए (जो आने वाले सालों में बढ़ेगा ही) की चौकीदारी वही तबका, वही समाज सोशल ऑडिट से करेगा, जिस पर यह पैसा खर्च किया जाना है।
सुन्दर लेखन।
ReplyDeletesarkar manrega ki jagah kuch production unit lagana chaihya jissa permanent roggar eaha ka logo ko mila.
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