30 JULY 2010 3 COMMENTS
फिल्म का ट्रेलर यहां देखें : that girl in yellow boots
मोहल्ला पर अनुराग कश्यप केप्रशंसकों और आलोचकों के लिए एक खबर है कि उनकी अप्रदर्शित फिल्म ‘द गर्ल इन यलो बूट्स’ इस साल वेनिस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल और टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के लिए चुनी गयी है। बतौर निर्माता उनकी फिल्म ‘उड़ान’ इस साल जून में कान फिल्म फेस्टिवल में अधिकृत रूप से चुनी गयी थी। स्वतंत्र फिल्मकारों के लिए यह प्रेरक खबर है, क्योंकि देश में बन रही सात-आठ सौ फिल्मों में से चंद फिल्में ही इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवलों के लिए चुनी जाती हैं। आलोचक पूछ सकते हैं कि विदेशी तमगों से इन फिल्मों को क्या फायदा होगा? फायदा तो होता है। इंटरनेशनल पहचान से कृति और रचना का भाव बढ़ जाता है। हम भारतीय उसे नए नजरिए से देखने लगते हैं। तमाम फिल्मकारों ने ऐसी ही पहचान से सरवाइव किया है और अपनी मर्जी की फिल्में बनाते रहे हैं।
यहां मैं बता दूं कि अनुराग कश्यप ने ‘उड़ान’, ‘द गर्ल इन यलो बूट्स’ और ‘तुम्बड़’ के लिए कारपोरेट कंपनियों से 10 करोड़ रुपयों की मदद मांगी थी। सभी कंपनियां 10 करोड़ तो क्या 50 करोड़ तक निवेश करने को तैयार थीं, लेकिन उनकी शर्त थी कि फिल्मों की स्टार वैल्यू बढ़ा दो। परिचित स्टारों को ले आओ। आदतन अनुराग कश्यप ने आसान रास्ता नहीं चुना। स्वतंत्र फिल्मकारों के लिए उन्होंने नयी पगडंडी चुनी। आज ‘उड़ान’ के नतीजे सभी के सामने हैं।
उल्लेखनीय है कि अनुराग की फिल्मों में कोई मेनस्ट्रीम मसाला नहीं है। सिर्फ कंटेंट और क्वालिटी के दम पर वे आगे बढ़ रहे हैं। बाजार में रह कर अपने लिए विकल्प तैयार कर रहे हैं।
क्या हमें अनुराग कश्यप की ताजा उपलब्धियों से प्रेरणा नहीं लेनी चाहिए?
♦ अब्राहम हिंदीवाला
पुन:श्च : सौरभ शुक्ला ने सिर्फ 1000 रुपयों में 25 मिनट की शार्ट फिल्म ‘लेट मी ट्विस्ट’ बनाई है। उसके बारे में
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर