बहुत दिनों के बाद मिली हो रास्ते में आज॥
वह भी मांग सजाये ,,खूब सिंगार रचाए॥
आँख तुम्हारी बता रही है । ख़ुशी खुसी कटती रतिया॥
ओठ थोड़ा रूखे लगते है॥ सोच सोच मेरी बतिया॥
चाँद की हूर हमें लगती हो॥ देख देख अंखिया शर्माए॥
सदा तुम्हारी गमके बगिया यही मेरी आशीष॥
मै कैसा मुझपर अब छोडो मेरे संग जगदीश॥
अगर कभी दुःख तुमको हो तो उसकी पता हमें चल छाए॥
वह भी मांग सजाये ,,खूब सिंगार रचाए॥
आँख तुम्हारी बता रही है । ख़ुशी खुसी कटती रतिया॥
ओठ थोड़ा रूखे लगते है॥ सोच सोच मेरी बतिया॥
चाँद की हूर हमें लगती हो॥ देख देख अंखिया शर्माए॥
सदा तुम्हारी गमके बगिया यही मेरी आशीष॥
मै कैसा मुझपर अब छोडो मेरे संग जगदीश॥
अगर कभी दुःख तुमको हो तो उसकी पता हमें चल छाए॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर