छोड़ गए यौवन चढ़ते ही॥
अब तक न तो दरश दिखाए॥
पांच वर्ष तो बीत गए है॥
पता नहीं वे क्यों नहीं आये॥
फोन नंबर मुझको नहीं मालूम॥
न तो पता ठिकाना॥
क्या पहचान बनाए है वे॥
क्या जाने उन्हें ज़माना॥
न कभी सपनों में आके ॥
अपनी हाल हमें बतलाये॥
थाल सजाये मै यौवन की॥
उनकी राह निहारूगी॥
उनकी राह सजा के रख दू॥
आते ही आरती उतारूगी॥
शायद को कहता कानो में॥
कहते कहते फिर रूक जाए॥
बोले वापस आते ही ॥
कर लूगा तुमसे शादी॥
मेरा मन भी मचल गया था॥
मै भी गयी थी राज़ी॥
आश लगाए कब तक बैठू॥
छड़ी जवानी मन मुरझाये॥
जीवन की लय है बड़ी बेदर्दी॥
याद आती है बीती बाते जब॥
आँख नहीं रूक पाती यूं ही॥
कट नहीं पाती राते तब॥
चढ़ी जवानी गम की बगिया में॥
शायद न कलियाँ खिल पाए॥
माँ कहती अब शादी कर लो॥
भूल जाओ उस मौसम को॥
जो कभी तुम्हारा कहता था॥
अब छोड़ बीते मौसम को॥
सही समय है शुभ घडी है॥
अब दूजे से व्याह रचाओ॥
शम्भू नाथ
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--- संजय सेन सागर