कलयुग में क्यों दानव बन कर॥
हां हां कार मचाते हो॥
अपनी ढफली अपनी तान॥
अपने आप बजाते हो॥
जब करो इशारा लूटे खजाना॥
खून खराबा हो जाता है॥
शोक में डूबे सच्चे जन को॥
समय चोट पहुचाता है॥
फिर तुमको क्षोभ न होता॥
तुम मदिरालय को जाते हो॥
क्यों तुम रावन कंस बन गए॥
खान दानी क्या पेशा॥
तुम बड़े वेदर्दी निकले॥
रोज़ का तेरा रिसा है॥
हाथ जोड़ सब करते विनती॥
फिर भी तुम रिशियाते हो॥
ई
हे बेईमानी के देशी दानव॥
क्यों माल हड़प कर जाते हो॥
जब डंडा गिरता कानूनी तब॥
हाय हाय चिल्लाते हो॥
महा दरिद्र के घर का आटा॥
राह चालत विथरा देते॥
कोई तुमसे कुछ न लेता॥
लेकिन दुःख तुम सब को देते॥
भांग की पुडिया क्यों तुम खा कर॥
रोज़ रोज़ पगलाते हो॥
हां हां कार मचाते हो॥
अपनी ढफली अपनी तान॥
अपने आप बजाते हो॥
जब करो इशारा लूटे खजाना॥
खून खराबा हो जाता है॥
शोक में डूबे सच्चे जन को॥
समय चोट पहुचाता है॥
फिर तुमको क्षोभ न होता॥
तुम मदिरालय को जाते हो॥
क्यों तुम रावन कंस बन गए॥
खान दानी क्या पेशा॥
तुम बड़े वेदर्दी निकले॥
रोज़ का तेरा रिसा है॥
हाथ जोड़ सब करते विनती॥
फिर भी तुम रिशियाते हो॥
ई
हे बेईमानी के देशी दानव॥
क्यों माल हड़प कर जाते हो॥
जब डंडा गिरता कानूनी तब॥
हाय हाय चिल्लाते हो॥
महा दरिद्र के घर का आटा॥
राह चालत विथरा देते॥
कोई तुमसे कुछ न लेता॥
लेकिन दुःख तुम सब को देते॥
भांग की पुडिया क्यों तुम खा कर॥
रोज़ रोज़ पगलाते हो॥
badi karari prahar karati huyi rachana hai...
ReplyDeletethankyou shukla ji,,,,
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया व्यंगात्मक रचना है ... बल्कि ये कहूँ कि सीधा प्रहार है ...
ReplyDeletethankyou sir,,
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