Skip to main content

क्यों पगलाते हो..

कलयुग में क्यों दानव बन कर॥
हां हां कार मचाते हो॥
अपनी ढफली अपनी तान॥
अपने आप बजाते हो॥
जब करो इशारा लूटे खजाना॥
खून खराबा हो जाता है॥
शोक में डूबे सच्चे जन को॥
समय चोट पहुचाता है॥
फिर तुमको क्षोभ न होता॥
तुम मदिरालय को जाते हो॥
क्यों तुम रावन कंस बन गए॥
खान दानी क्या पेशा॥
तुम बड़े वेदर्दी निकले॥
रोज़ का तेरा रिसा है॥
हाथ जोड़ सब करते विनती॥
फिर भी तुम रिशियाते हो॥


हे बेईमानी के देशी दानव॥
क्यों माल हड़प कर जाते हो॥
जब डंडा गिरता कानूनी तब॥
हाय हाय चिल्लाते हो॥
महा दरिद्र के घर का आटा॥
राह चालत विथरा देते॥
कोई तुमसे कुछ न लेता॥
लेकिन दुःख तुम सब को देते॥
भांग की पुडिया क्यों तुम खा कर॥
रोज़ रोज़ पगलाते हो॥

Comments

  1. badi karari prahar karati huyi rachana hai...

    ReplyDelete
  2. बहुत ही बढ़िया व्यंगात्मक रचना है ... बल्कि ये कहूँ कि सीधा प्रहार है ...

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा