मै तो गलियों का आवारा कुत्ता हूँ॥
इधर उधर भौ भौ कर भूकता हूँ॥
हर एक दरवाजे पर जाता हूँ॥
रोटी के लिए हाजरी लगाता हूँ॥
कोई खीच कर लट्ठ मारता है॥
मै चिल्लाते हुए दम हिलाते चल देता हूँ॥
खाता हूँ तो सुरक्षा की गारंटी देता हूँ॥
शांत माहौल में पैर की आहट सुन॥
काल से भी सामना करता हूँ॥
लेकिन मौक़ा देख मुझपर वार कर देता है॥
जहा मै जीभ से चाट नहीं सकता हूँ॥
और हमारे शारीर में कीड़े पद जाते है॥
जिधर जाता हूँ लोग दर दर कर भगाते है॥
मै भागता हूँ एकांत ढूढता हूँ॥
फिर मै अपने प्राणों को त्याग देता हूँ॥
मेरी लाश पर बच्चे थूकते है ॥
कहते है कितनी बदबू आ रही है॥
मेरी सदी लाश को कोई गंगा में विसर्जित नहीं करता॥
क्यों की मै एक आवारा कुत्ता हूँ॥
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--- संजय सेन सागर