अजित वडनेरकर जी का ब्लॉग शब्दों का सफ़र हमेशा से ही कुछ ख़ास तरह की विषयवस्तु के लिए चर्चित है,आज हम उनके ब्लॉग से उधार लेकर एक लेख हिन्दुस्तान का दर्द पर प्रकाशित कर रहे है,पसंद आये तो अपनी बधाई प्रेषित करें...
staurday, JUNE 26, 2009
आज का युग सूचनाओं का है जिनके बीच हम जीते हैं। सूचनाओं की भीड़ में सूचना बनने का दबाव इतना अधिक है कि हमारे इर्द-गिर्द जो कुछ होना चाहिए, उसे इस अंदाज में किया जाता है कि वह सूचना में तब्दील हो जाता है। हिन्दी में सूचना से जुड़े कई शब्द प्रचलित हैं जैसे संवाद, समाचार, खबर वार्ता आदि।
सूचना-संसार में सूचना देने वाले को संवाददाता कहा जाता है जिसका अर्थ हुआ संवाद देना। संवाद अर्थात सूचना। संवाद बना हैसम+वद् से। सम् यानी समान रूप से और वद् यानी कहना। अर्थ हुआ बोलना, बतियाना, कहना-सुनना। संस्कृत धातु वद् के व्यापक अर्थ हैं। संवाद में निहित अर्थों में कहना, बोलना के साथ सम्प्रेषित करना और अभिव्यक्त करना जैसी बातें शामिल हैं। इस तरह संवाददाता का अर्थ हुआ समाचार देने वाला। खबरनवीस, न्यूज़मैन। मराठी में संवाददाता को वार्ताहर कहते हैं। वार्ता यानी समाचार और हरः यानी दूत यानी देने वाला। मतलब हुआ संवाददाता। वार्ता का अर्थ भी खबर या समाचार होता है। यह बना है वृत्त से जिसमें गोल, घेरा जैसे भाव तो हैं ही साथ ही घटना, बीता हुआ, खबर,समाचार, नियम आदि भाव भी हैं। इतिवृत्त का अर्थ होता है सम्पूर्ण घटनाक्रम। वृत्ति भी इससे ही बना है जिसमें अवस्था, शैली, कार्य जैसे भावों के साथ शब्द की शक्ति का भाव भी शामिल है। भाषिक-रचना की शैली भी वृत्ति कहलाती है। इससे बने वार्त्ता का मतलब होता है समाचार, गुप्त बात आदि। बातचीत के अर्थ में जो बात शब्द हम आए दिन इस्तेमाल करते हैं वह इसी वार्त्ता का ही परिवर्तित रूप है। हिन्दी की विभिन्न बोलियों में बातां, बतियां जैसे शब्द-प्रयोग भी प्रचलित हैं।
सूचना के लिए सबसे लोकप्रिय शब्द है ख़बर। दिन में कई बार इसका प्रयोग होता है। किसी से भी मिलने पर एक सामान्य सा संवाद तय है-क्या खबर? खबर सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द है और अरबी से फारसी उर्दू होते हुए हिन्दी में दाखिल हुआ। यह बना है खब्बार से। इसकी मूल धातु है ख-ब-र जिसमें सूचना देना, ज्ञान देना, सलाह देना जैसी बातें शामिल हैं। ख़बर का मतलब हुआ सूचना, संवाद, समाचार, संदेश, पैग़ाम आदि। अरबी में पैगम्बपर मुहम्मद साहब के प्रवचन को भी ख़बर कहा गया है। इसका बहुवचन होता है अख़बार अर्थात समाचार पत्र। जाहिर है अखबार में बहुत सी खबरें होती हैं इसलिए उसे अख़बार यानी ‘खबरों का समूह’ कहा जाता है। यूं तो सूचना देने वाले को ख़बरनवीस कहा जाता है पर इसका सही अर्थ हुआ खबरलिखने वाला। यहां पत्रकार वाला भाव कम उभरता है। वैसे ख़बररसां और खबरगीर जैसे शब्द भी अरबी-फारसी में हैं जिनका मतलब होता है खबर पहुंचानेवाला और खबर लेने वाला। ख़बरदार शब्द भी इससे ही बना है जिसमें सचेत, होशियार या सावधान रहने का भाव है। विशेष समाचार पहुंचाने वाले के लिए मुख़बिर शब्द है। इसमें गुप्तचर या जासूस का भाव निहित है। जिस तरह अख़बारों यानी समाचार पत्रों में तनख्वाह पाने वाले ख़बरनवीस होते हैं वैसे ही कुछ सरकारी महकमों में तनख्वाह पाने वाले मुखबिर भी होते हैं। दोनों का ही काम ख़बरें लाना होता है। जहा पत्रकार की ख़बरें तत्काल जनता तक पहुंचती हैं वहीं मुख़बिर की ख़बरें जनता तक कभी नहीं पहुंचती।
खबर के साथ ही समाचार शब्द भी इन्ही अर्थो में खूब चलन में है। समाचार बना है सम+आचार से। सम यानी समान रूप से।आचार का अर्थ होता है समाज में व्याप्त व्यवहार, रीति, काम करने का ढंग, चालचलन, प्रथा आदि। इस तरह खबर के अर्थ में समाचार शब्द सम्पूर्णता लिए हुए है। समाचार का अर्थ हुआ समाज के लोकाचारों अर्थात जो कुछ भी समाज में घट रहा है उसके बारे में समरूप यानी जस का तस बताना। एक सूचना सही अर्थों में तभी समाचार कहलाती है जब उसमें सभी तरह की जिज्ञासाओं के उत्तर हों।
अंग्रेजी का न्यूज़ news शब्द अब हिन्दी में भी खूब इस्तेमाल होता है जिसका मतलब भी ख़बर या समाचार ही होता है। आमतौर पर लम्बे समय बाद एक दूसरे से मिलने पर हम लोगों का हाल जानते हैं जिसे इतिवृत्त कह सकते हैं। मगर जिनसे हम रोज़ ही मिलते हैं उनसे भी शिष्टाचारवश हाल-चाल पूछा जाता है जिसमें ‘क्या हाल है’ जैसे वाक्य होते हैं। इन वाक्यों में कही न कहीं यह छुपा होता है कि ‘नया क्या है’, बस, अंग्रेजी के न्यूज़शब्द का यही अर्थ है। यह बना है new से जिसका मतलब होता है नवीन, नूतन या नया। मध्यकालीन अंग्रेजी ने लोकव्यवहार में आए भाषायी बदलाव से एक नया शब्द ग्रहण किया जो न्यू के बहुवचन के तौर पर इस्तेमाल होने लगा था। इसे न्यूज़ की तरह उच्चारा जाता था जिसमें नया क्या? वाला भाव ही था। एक अन्य मान्यता के अनुसार news शब्द north, east, west, south का संक्षेपीकरण है। यह दिलचस्प है मगर इससे समाचार वाले भाव की पुष्टि नहीं होती।
संस्कृत की धातु है सूच् जिसमें चुभोना, बींधना जैसे भाव तो हैं ही साथ ही निर्देशित करना, बतलाना, प्रकट करना जैसे अर्थ भी इसमें निहित हैं। दरअसल इसमें सम्प्रेषण का तत्व प्रमुख है। इन तमाम भावों का विस्तार है पता लगाना, भेद खोलना और भांडाफोड़ करना आदि। पत्रकारिता विभिन्न सूचनाओं के जरिये यह काम बखूबी कर रही है। सूचना शब्द आता है सूचः से बनेसूचनम् शब्द से जिसमें संकेत करना, जतलाना, बतलाना, इशारा करना, समाचार देना आदि निहित है। इसमें पढ़ाना और अवगत कराना भी शामिल है। जिसे हम ज्ञान कहते हैं दरअसल वे सूचनाएं ही तो हैं जो पढ़ने-पढ़ाने की क्रिया से हमें मिलती हैं। सूचना के दायरे में अब सिर्फ खबर, रिपोर्ट, समाचार, न्यूज़ आदि बातें शामिल हो गईं हैं। सूचना देने की क्रिया सूचित करना कहलाती है।
सुन्दर आलेख
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
सच संजय जी आपकी पसंद भी खूब है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख...अजित जी बधाई हो
media maमीडिया मंडी का खूबसूरत विवरण पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteजय हिन्दुस्तान-जय यंगिस्तान
मीडिया मंडी का खूबसूरत विवरण पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteजय हिन्दुस्तान-जय यंगिस्तान
हिन्दुस्तान का दर्द की इस तरह के लेख शोभा बड़ा देते है
ReplyDeleteमगर हिन्दुस्तान का दर्द से जुड़े लोग इसके लिए कुछ नहीं करते
यहाँ तक की अपनी राय को भी नहीं देते जो अच्छा नहीं है
हिन्दुस्तान का दर्द की इस तरह के लेख शोभा बड़ा देते है
ReplyDeleteमगर हिन्दुस्तान का दर्द से जुड़े लोग इसके लिए कुछ नहीं करते
यहाँ तक की अपनी राय को भी नहीं देते जो अच्छा नहीं है
हिन्दुस्तान का दर्द ने मुझे एक पहचान दी है जिसे में नहीं भूल सकता.
ReplyDeleteलेकिन संजय जी से एक शिकायत हमेशा रहेगी की उन्होंने मेरी बात सुने बिना ही मेरी सदस्यता समाप्त कर दी थी..
फिर में यही चाहता हूँ की हिन्दुस्तान का दर्द खूब आगे जाये
जय हिन्दुस्तान -जय यंगिस्तान
व्योम हिन्दुस्तान का दर्द से न केवल आपकी सदयस्ता समाप्त की गयी उसके साथ साथ मुझे भी यहाँ से हटा दिया गया था,शायद गलती मेरी थी..
ReplyDeleteक्योंकि संजय जी गलत नहीं करेंगे..फिर अच्छा लगता है यहाँ आकर
अजित जी का लेख बहुत पसंद आया
ReplyDeleteआगे भी उनके लेख पढने के लिए उत्सुक है
अजित जी तो हमेशा से मेरी पसंद रहे है दानिक भास्कर के माध्यम से भी इनके सरे लेख पचा जाता हूँ,इसी वजह से मैं इनका लेखा यहाँ ले आया हलाकि देर कर दी.मगर जब जागो तब सबेरा....
ReplyDeleteव्योम और कशिश की बातों पर पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है सो अब और नहीं वो समय की मांग थी इस वजह से यह सब हुआ ...
हिन्दुस्तान का दर्द से जुड़े सदस्यों से शिकायत तो है की वो अपनी राय यहाँ दर्ज नहीं कराते,
अगर हम जिंदा है तो जिंदा नजर आना भी जरुरी है
अजित जी तो हमेशा से मेरी पसंद रहे है दानिक भास्कर के माध्यम से भी इनके सरे लेख पचा जाता हूँ,इसी वजह से मैं इनका लेखा यहाँ ले आया हलाकि देर कर दी.मगर जब जागो तब सबेरा....
ReplyDeleteव्योम और कशिश की बातों पर पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है सो अब और नहीं वो समय की मांग थी इस वजह से यह सब हुआ ...
हिन्दुस्तान का दर्द से जुड़े सदस्यों से शिकायत तो है की वो अपनी राय यहाँ दर्ज नहीं कराते,
अगर हम जिंदा है तो जिंदा नजर आना भी जरुरी है