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एहि हसाम: ।।


एकदा चत्वार: जना: कुत्रचित् एकं लघुआयोजनं (पार्टी) कर्तुं गतवन्‍त: । 

ते आपणत: (दुकान) चत्वार: त्रिकोणपिष्‍टकं (समोसा) स्‍वीकृतवन्‍त: । 

यदा ते आनन्‍दायोजनं कर्तुम् उद्युक्‍ता: आसन् तेषां स्‍मरणम् आगतम् यत् ते इदानीं पर्यन्‍तं शीतपेयं (पेप्‍सी इत्‍यादि) न स्‍वीकृतवन्‍त: ।

ते विचारितवन्‍त: यत् तेषु कश्चित् पुन: विपणीं (बाजार) गत्‍वा शीतलपेयं स्‍वीकुर्यात् ।


तेषु एक: गन्‍तुं स्‍वीकृति: दत्तवान  । 

किन्‍तु यदा पर्यन्‍तम् अहं न आगच्‍छानि तदा पर्यन्‍तं कोपि एकमपि पिष्‍टकं न भुंजेत (खाये) इति स: अवदत् ।

सर्वे अंगीकृतवन्‍त: (स्‍वीकार किया)

स: गत: । 

एक: दिवस: गत:, स: न आगतवान । 

द्वितीय: दिवस: गत:,   पुनरपि स: न आगतवान ।

सर्वे विचारितवन्‍त: यत् सम्‍भवत:  स: विस्‍मृतवान शीतलपेयं आनेतुम् अत: इदानीं वयं स्‍व-स्‍व पिष्‍टकं भुंजेयम  (खायें) ।

अत: तृतीये दिवसे ते पिष्‍टकं भोक्‍तुम्  उद्यता: अभवन । 

यदैव जैसे ही ते पिष्‍टकं हस्‍ते स्‍वीकृतवन्‍त: चतुर्थ: वृक्षस्‍य पृष्‍ठत: (पेड के पीछे से) बहि: आगत: उक्‍त: च 

यदि भवन्‍त: पिष्‍टकं खादिस्‍यन्ति चेत् अहं शीतलपेयं आनेतुं न गच्‍छामि ।।


Comments

  1. अहम विहसन्ति इति सत्यम.

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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