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चिट्ठाजगति संस्‍कृतप्रशिक्षणं प्रारभ्यते ।। भवन्‍त: अपि लाभ: स्‍वीकुर्यु: ।।



।। हिन्‍दी भाषायां पठितुम् अत्र बलाघात: करणीय: ।।
मम सुहृद् मित्राणि
गत दिवसेषु अहं संस्‍कृतभाषाया: प्रसाराय संस्‍कृतप्रशिक्षणं दातुं मम अस्‍य नूतन जालपुटस्‍य निर्माणं कृतवान्
चिन्तितवान् आसम् यत् जनानां रूचि: वर्धिष्‍यते अथ च सम्‍भवत: जना: संस्‍कृतं बोधितुम् अपि इच्‍छाप्रकटनं करिष्‍यन्ति ।
किन्‍तु संस्‍कृतं ज्ञातुं तु इच्‍छा नैव दृष्‍ट: अपितु पठितुमपि रूचि: न दृष्‍यते।
अयि भो: पाठनं तु नास्ति एव, अहं चिन्‍तयामि यत् अत्र जनानां सम्‍भवत: आगमनम् अपि नैव भवति ।
एकदा तु चिन्‍तने आगत: यत् केवलं संस्‍कृते लेखनं एव चलेत्।
यतोहि प्रशिक्षणाय तु न्‍यूनाति न्‍यूनं दश-पंचदश जना: तु भवेयु: एव ।।
किन्‍तु मम एतस्‍य विचारस्‍योपरि मम केचन् भ्रात्रृणां प्रेम बलीयसी अभवत् ।।
मम अस्‍य जालपुटस्‍योपरि आगमनं न्‍यूनजनानाम् एव भवतु किन्‍तु ते सन्ति संस्कृतानुरागिण: ।
 
तेषां श्रद्धा अपि अद्भुता एव ।
अत: अहं तेषां कृते एव संस्‍कृतप्रशिक्षणस्‍य प्रारम्‍भ: करोमि ।
अग्रिम लेखत: संस्‍कृतस्‍य प्रशिक्षणं प्रारभ्यते।

भवन्‍त: सादरम् आमन्त्रिता: सन्ति।
भवतां संस्कृतश्रद्धा चिरकालपर्यन्‍तं यथावत् तिष्‍ठेत् , इति मे शुभाषा ।।


भवदीय: - आनन्‍द:

Comments

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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