मुक्तिका:
मानव विषमय...
संजीव 'सलिल'
*
*
मानव विषमय करे दंभ भी.
देख करे विस्मय भुजंग भी..
अपनी कटती देख तंग पर.
काटे औरों की पतंग ही..
उड़ता रंग पोल खुलती तो
होली खेले विहँस रंग की..
सत्ता पर बैठी माया से
बेहतर लगते हैं मलंग जी.
होड़ लगी फैशन करने की
'ही' ज्यादा या अधिक नंग 'शी'..
महलों में तन उज्जवल देखे
लेकिन मन पर लगी जंग थी..
पानी खोकर पूजें उसको-
जिसने पल में 'सलिल' गंग पी..
**************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पा ट.कॉम
मानव विषमय...
संजीव 'सलिल'
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मानव विषमय करे दंभ भी.
देख करे विस्मय भुजंग भी..
अपनी कटती देख तंग पर.
काटे औरों की पतंग ही..
उड़ता रंग पोल खुलती तो
होली खेले विहँस रंग की..
सत्ता पर बैठी माया से
बेहतर लगते हैं मलंग जी.
होड़ लगी फैशन करने की
'ही' ज्यादा या अधिक नंग 'शी'..
महलों में तन उज्जवल देखे
लेकिन मन पर लगी जंग थी..
पानी खोकर पूजें उसको-
जिसने पल में 'सलिल' गंग पी..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पा
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर