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नजदीकियां



कैसे है ये दिलो के फांसले , जो नजदीकियां को बढाते हैं ; जिंदगी के इस मोड़ पर यह प्यार का नाता हमारा , रहा कि वीरानियो को जैसे मिल गया हो सहारा तुम्हारा जिनता दूर होते हैं वो ,उतना ही हमको पास नज़र आते हैं वो एक प्यार भरा दिल था .जिसे समझने के बाद हम दीवाने हो गए है वो भी इक प्यार भरी नज़र ही थी ,जिसने मेरे रूप को साकार किया है ज़िन्दगी के इस मोड़ पर यह प्यार का नाता हमारा , राह की वीरानियों को जैसे मिल गया हो सहारा तुम्हारा | तारो से भरा आसमां ,नहा गया चाँद कि चांदनी से फूलो से भरी डालियाँ भी ,झुक गयी तुम्हारे सत्कार में ऐसा खिला है अपना रिश्ता कुछ तुम्हारा कुछ हमारा, कि तुमको खोजती हूँ, मै चाँद की परछाईयों में , बाट तकती हूँ मै तुम्हारी रात की तन्हाइयों में , आज मेरी कामनाओं ने तुम्हे कितना है पुकारा, ऐसी हे कुछ खिला हुआ रिश्ता , कुछ तुम्हारा कुछ हमारा, ज़िन्दगी के इस मोड़ पर यह प्यार का नाता हमारा |||| (((कृति ..अंजु चौधरी ..(अनु))))

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डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा