मनसा सततं स्मरणीयम्
वचसा सततं वदनीयम् ।।
लोकहितं मम करणीयम् ।।
न भोगभवने रमणीयम्
न च सुखशयने शयनीयम्
अहर्निशं जागरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ।।
न जातु दु:खं गणनीयम्
न च निजसौख्यं मननीयम्
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ।।
दु:खसागरे तरणीयम्
कष्टपर्वते चरणीयम्
विपत्तिविपिने भ्रमणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ।।
गहनारण्ये घनान्धकारे
बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे
तत्र मया संचरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम्
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--- संजय सेन सागर