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हम दिल में बसा के रखे बैठे थे॥

तुम दिल को हमारे तोड़ गए॥

मुझे अकेले छोड़ गए॥

जीवन की लय को मोड़ गए॥

अफसोशहमें है अपने पर॥

किस कारण प्रीतम रूठ गए॥

फूले के थाली में जेवना लगायव॥

मन की उमंगें से पंखी दोलायव॥

क्या स्वाद नहीं था भोजन में॥

जो परसी थाली को छोड़ गए॥

हम दिल में बसा के रखे बैठे थे॥
तुम दिल को हमारे तोड़ गए॥
मुझे अकेले छोड़ गए॥
जीवन की लय को मोड़ गए॥

लाची लवांगी के बीरा लगायव॥

केवडा जल खुश्बो को मिलायव॥

क्या कडुवा लगा था पान॥

जो मुह से उसको थूक चले॥

हम दिल में बसा के रखे बैठे थे॥
तुम दिल को हमारे तोड़ गए॥
मुझे अकेले छोड़ गए॥
जीवन की लय को मोड़ गए॥

चुन-चुन फुलवा से सेजिया सजायव॥

चारो तरफ से पर्दा लगायव॥

क्या खतमत आया बिस्तर पे॥

जो नीचे सोने पर मजबूर हुए॥

हम दिल में बसा के रखे बैठे थे॥
तुम दिल को हमारे तोड़ गए॥
मुझे अकेले छोड़ गए॥
जीवन की लय को मोड़ गए॥




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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

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