Skip to main content

लो क सं घ र्ष !: ईमानदारी

कहा जाता है कि हर सिद्धान्त का एक अपवाद हुआ करता है। सिद्धान्त है - इस युग का हर वह व्यक्ति ईमानदार है जिसको बेईमानी का मौका नहीं मिलता, लेकिन एक नाम अपवाद है जो है अकील ज़फर। कहते हैं -

काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाए।
एक लीक काजल की लगि है सो लागि है॥

कहा जाता है कि अपने देश के हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार ही फल-फूल रहा है लेकिन स्टाम्प और पंजीयन विभाग नीचे से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ विभाग है। विक्रय विलेख का पंजीयन हो या फिर मामूली से वसीयत नामे का, बिना चढ़ावा के कोई भी पंजीयन सम्भव नहीं हैं, यह एक आम राय बन चुकी है।
माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष महानिरीक्षक पंजीयन हिमांशु कुमार ने उपस्थित होकर बताया कि अकील ज़फर उनके विभाग का अकेला अधिकारी (अतिरिक्त महानिरीक्षक, स्टाम्प) ही ईमानदार व्यक्ति है, जिसका समर्थन के दूसरे अधिकारी श्री ए0के0 द्विवेदी ने भी किया, फिर इस बयान पर हंगामा क्यों? अधिकारियों की समिति ने और विशेष करके समिति के अध्यक्ष श्री ओ0पी0 सिंह ने यह हंगामा क्यों खड़ा किया? जबकि श्री हिमांशु कुमार का बयान स्वयं उनके खिलाफ भी जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि चोर अपनी दाढ़ी में तिनका ढूंढ रहा हो। इस औदे पर रहकर अगर एक अधिकारी सिर्फ अपने बच्चों को पढ़ा सकता है और वह अपने घर में अपनी पत्नी की इच्छा पूर्ति के लिए सोफा नहीं ला सकता और अपने से दफ्तर पैदल जाता-आता है, तो इस तरह की ईमानदारी को ईमानदारी नहीं तो फिर क्या कहें।

श्री ओ0पी0 सिंह जी मान जाइए आप भी ईमानदार को ईमानदार कहिए, वार्षिक प्रवृष्टि तो हर एक की अच्छी होती है बल्कि जहां सब बेईमान हों यहां तक कि वार्षिक इन्ट्री देने वाला भी तो वार्षिक इन्ट्री कैसे खराब हो सकती है। यह दुनिया, बेईमान चाहे जितने बढ़ जाएं चलती है और चलती रहेगी, लेकिन ईमानदारी और ईमानदार की तारीफ भी हमेशा होती आई है और होती रहेगी। ईमानदारी बस ईमानदारी है इसकी महत्ता को कम न कीजिए।

--मोहम्मद शुऐब

Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा