Skip to main content

घर घर में हो रहा है 'सच से सामना'

घर घर में हो रहा है 'सच से सामना'


image

"मेरा बच्चा हाथ से निकलता जा रहा है। कुल जमा सोलह साल का है पर मुझे पता है कि वो ड्रग्स लेने लगा है। उसकी हर जिद पूरी करते हुए मुझे लगा करता था कि जो कुछ कमा रहा हूं, इन्हीं बच्चों का ही तो है। मैने उसे मोबाइल भी ले दिया और स्कूटी भी। देखता हूं कि पता नहीं किसके साथ रात-रात भर बातें करता है।"

"उसके चेहरे पर दो साल पहले तक बहुत नूर हुआ करता था पर अब पता नहीं कैसा विचित्र सा रूखापन उसके चेहरे और स्वभाव में आ चुका है। मैं ये सोच सोच कर हलकान हो रहा हूं कि जिस परिवार की सुख शांति समृद्धि के लिए कारोबार में क्या कुछ नहीं किया, उसी पैसे ने मेरे परिवार व मेरे मन की शांति को आग लगा दी है।" ये व्यथा मेरे लुधियाना स्थित एक उद्योगपति मित्र की है जिसका नाम यहां देना उसे सारे जमाने में रुसवा करने जैसी बात होगी। वैसे भी इस प्रकार की अवस्था झेल रहे वे अकेले नहीं हैं। पिछले बीस साल से बदलाव की जो बयार बह रही है, संचार माध्यमों में जिस प्रकार क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं उस दौर ने हमारी जीवनशैली में बदलाव तो किया है पर एक हकीकत तो कायम ही है कि जिस प्रणाली से असंख्य लाभ होते हैं, उसकी हानियां भी अनगिनत ही होती हैं। एयर कंडीशन यदि आगे से ठंडक देता है तो पीछे से उतनी ही शिद्दत से गर्मी भी फैंकता है।

बच्चे और ड्रग्स!
बच्चे ड्रग्स क्यों लेते हैं? इस पर शोध करने के लिए कुछ डाक्टरों, मनोचिकित्सकों व अध्यापकों से बात की। सबसे जो सवाल पूछे वे कामन थे पर अपने अपने क्षेत्र के इन विशेषज्ञों की राय पर जब मनन किया तो जवाब बेहद खतरनाक निकला। बच्चों को नशेड़ी बनाने में पिच्चासी फीसदी से अधिक भूमिका मां-बाप की है जिनकी तमन्ना अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला कर उसका भविष्य बनाने की होती है पर सामाजित ताने बाने में आए बदलाव को महसूस करने में वे मार खा जाते हैं।

शिक्षक का कहना था कि बच्चों के अंक प्रतिशत को लेकर अभिभावकों में अंधी दौड़ का आलम है। वे अपने मित्रों व रिश्तेदारों के साथ इस प्रतिस्पर्धा में लगे हैं कि उनका बच्चा दूसरों के बच्चों से कितने फीसदी अंक ज्यादा लेकर आता है। ट्यूशन,स्पैशल क्लास का बोझ लादने के साथ बच्चे पर अभिभावकों का दबाव रहता है कि वो ज्यादा से ज्यादा अंक लाए। हमारे दौर में पचास फीसदी से ज्यादा अंक लाने पर घर में घी के दीये जलने वाले हालात होते थे जबकि ताजा स्थिति ये है कि बच्चा अस्सी फीसदी अंक ले आए तो अभिभावक कहते हैं कि तुमने तो नाक कटवा दी। डाक्टर की मान्यता है कि अधिक अंक प्राप्त करने के चक्कर में बच्चा इतने लंबे समय तक बैठने व लगातार जाग कर पढऩे के मामले में अपने शरीर में ऊर्जा की कमी पाता है। जब वे अपने सहपाठी को ये सब आसानी से करते हुए देखता व पूछता है तो साथी उसे एक ऊर्जा बढ़ाने वाली गोली देता है। यहीं से बच्चों में ड्रग्स लेने की शुरुआत होती है।

मनोचिकित्सक का कहना है कि अभिभावक अपने स्टेटस सिंबल को देखते हुए बच्चे को महंगे से महंगे स्कूल में दाखिला दिलवाते हैं। वे ये नहीं जानते कि ड्रग्स के डीलर्स का निशाना भी वही महंगे स्कूल होते हैं। सीधी सी बात है कि किसी सामान्य स्कूल में पढऩेवाला बच्चा जिस सोशल क्लास से बावस्ता होता है वो तो घर में चोरी करके भी महंगे नशे नहीं खरीद सकता। जबकि महंगे स्कूल में पढऩे वाला बच्चा पैसे खर्च करने की हैसियत जरूर रखता है चाहे वो घर से चोरी करके ही अपनी लत को पूरा करे। इसके अलावा बच्चा स्कूल में अपने सहपाठियों को मोबाईल पर एमएमएस बनाते, चैटिंग करते व तेज़ वाहन चलाते देख कर अपने मां-बाप को भी वो सब सुविधाएं लेकर देने पर मजबूर करता है व अंत पंत इन सब चीज़ों को हासिल करके ही दम लेता है, बस यहीं से हवा में उड़ती सूचना क्रांति की अदृष्य आज़ादी बच्चे को कहीं और ही ले जाती है।

मोबाईल, इंटरनैट व मोटरसाईकिल
यहां दिल्ली की एक महिला पत्रकार कुलीग की व्यथा आपको बताता हूं। उसके घर में कम्प्यूटर व इंटरनेट है। नौ साल के बच्चे ने पहले देखा देखी कम्प्यूटर ऑन करना सीखा, फिर स्कूल के दोस्तों ने उसे गेम्स लोड करने की वैबसाईट बताई। उसने गेम्स लोड़ करलीं तो मां अपने बेटे के इस इंटलैक्ट पर वारी वारी जाए। पर एक दिन उसके दिमाग में आया की कहीं गेम्स लोड़ करते करते कोई ऐसी साईट खुल गई जो बच्चों के देखने लायक न हुई तो...?

सूचना क्रांति ने वास्तव में क्रांति ला दी है। पर इसका दूसरा चेहरा ये है कि इस क्रांति ने कई ऐसे पर्दे भी खोल दिये हैं जो हर वर्ग के लिए उचित नहीं हैं। ऊपर से टीवी ने भी बहुत विचित्र स्थिति पैदा कर दी है। क्या आप मानेंगे कि आजकल विज्ञापन बनाने वाली कंपनियों के लिए जो सुपर माडल हैं वो बच्चे ही हैं। बच्चे के चेहरे पर किसी सामान का विज्ञापन देते समय जो मासूम व कुदरती भाव होते हैं वैसा अभिनय कोई परिपक्व अभिनेता भी नहीं कर सकता। और टीवी पर बच्चों की सामान खरीदने की अपील का सबसे ज्यादा असर पहले बच्चों पर पड़ता है और फिर अभिभावकों की जेबों पर। ये नई पौध की लालसाएं भड़काने का बहुत ही घिनौना हथियार है। बाजार के इस खेल की जब तक हमारे बच्चों को समझ में आएगी, यकीन मानिये तब तक हमारी पीढिय़ों में इक्का दुक्का ही जवान पैदा होंगे। इन नशीले ड्रग्स का बड़ों पर कितना घातक असर होता है व आने वाली संतान पर क्या असर पड़ता है ये जानने के लिए अपने एक मित्र की आपबीती आपको बताता हूं।

उसने एक बच्चा गोद लिया जिसके मां-बाप का तलाक हो गया था। तलाक का कारण बच्चे के पिता को स्मैक की लत थी जिसके कारण उसकी शादी टूट गई। अब बच्चा सात साल का हो चुका है। पर उसके शरीर पर, स्वभाव पर क्या असर हुआ है वो हैरान करने वाला है। घर का माहौल बेहद विनम्रता व सुकून भरा है पर बच्चा इस हद तक उग्र है कि वो किसी की परवाह नहीं करता। उसके भीतर जैसे स्नेह के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाए। मोहल्ले के बच्चों को गंदी गालियां देना व हर किसी से झगड़ा करने पर उतारू रहना उसका हर श्रण का खेल है। पढ़ाई में लगातार उदासीन हो रहा है। खाने के नाम पर घोड़े की तरह बिदकता है। डाक्टर ने पूरी तरह से उसकी जांच की व सवाल किया कि क्या बच्चे का पिता स्मैक व नशीले पदार्थ का इस्तेमाल काफी अधिकता से करता था? अब सोचिये कि एक भरे पूरे जवान ने ड्रग्स के चलते आने वाली पीढ़ी का ये हाल कर दिया,यदि बच्चे ही ऐसे ड्रग्स लेना शुरु कर देंगे तो अगली पीढ़ी कैसी होगी

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फड़फड़ाहट

अतुल अग्रवाल 'वॉयस ऑफ इंडिया' न्यूज़ चैनल में सीनियर एंकर और 'वीओआई राजस्थान' के हैड हैं। इसके पहले आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, डीडी न्यूज़ और न्यूज़24 में काम कर चुके हैं। अतुल अग्रवाल जी का यह लेख समस्त हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों और पाठकों को पढना चाहिए क्योंकि अतुल जी का लेखन बेहद सटीक और समाज की हित की बात करने वाला है तो हम आपके सामने अतुल जी का यह लेख प्रकाशित कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगा,इस लेख पर अपनी राय अवश्य भेजें:- 18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबा

Special Offers Newsletter

The Simple Golf Swing Get Your Hands On The "Simple Golf Swing" Training That Has Helped Thousands Of Golfers Improve Their Game–FREE! Get access to the Setup Chapter from the Golf Instruction System that has helped thousands of golfers drop strokes off their handicap. Read More .... Free Numerology Mini-Reading See Why The Shocking Truth In Your Numerology Chart Cannot Tell A Lie Read More .... Free 'Stop Divorce' Course Here you'll learn what to do if the love is gone, the 25 relationship killers and how to avoid letting them poison your relationship, and the double 'D's - discover what these are and how they can eat away at your marriage Read More .... How to get pregnant naturally I Thought I Was Infertile But Contrary To My Doctor's Prediction, I Got Pregnant Twice and Naturally Gave Birth To My Beautiful Healthy Children At Age 43, After Years of "Trying". You Can Too! Here's How Read More .... Professionally