सैयद तलत हुसैन
पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच करने के लिए बनाए गए संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग की रिपोर्ट से यह साफ है कि उसका मंतव्य न तो निष्पक्ष है और न ही ‘गैरराजनीतिक’। यह एक ऐसा दस्तावेज है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तानी तंत्र के खिलाफ वर्तमान और भविष्य की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मुहिमों में संदर्भ की तरह किया जा सकता है।लाख कोशिशों के बाद भी जो काम न वॉशिंगटन कर सका और न नई दिल्ली, वह एक छोटे से स्टाफ वाले तीन सदस्यीय आयोग ने कर दिखाया।
विडंबना तो यह है कि आयोग पाकिस्तान के करदाताओं के धन से चलता है और इसे मुल्क के राष्ट्रपति का अनुमोदन हासिल है। आयोग ने पाकिस्तान की फौज, आईएसआई, एमआई और आईबी जैसी तमाम खुफिया एजेंसियों, रिटायर्ड अफसरों व पुलिस महकमे के लोगों की कुख्यात छाया हुकूमत को अंतत: औपचारिक रूप से एक बदमाश शासन तंत्र का हिस्सा घोषित कर दिया है। एक ऐसा शासन तंत्र, जो न केवल अंतरराष्ट्रीय अव्यवस्था को जन्म देता है, बल्कि अपने ही नेताओं की हत्या करने से भी नहीं चूकता।
यह विनाशकारी निष्कर्ष पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच के लिए बनाए गए संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग की रिपोर्ट का है, जो शुरू से आखिर तक इसे साबित करने के लिए जी-जान एक कर देती है। जिस प्रेस कांफ्रेंस में यह रिपोर्ट जारी की गई, उसमें आयोग ने अपने को निष्पक्ष बताने पर खासा जोर दिया था।
लेकिन अगर रिपोर्ट और उसके मंतव्यों को ध्यान से पढ़ें तो साफ हो जाता है कि उसका संदेश न तो निष्पक्ष है और न ही ‘गैरराजनीतिक’। सरकारी सुरक्षा योजनाओं जैसे फैसलों और श्रीमती भुट्टो की हत्या के बीच की कड़ियों को जिस तरह जोड़ा गया है, उससे भी यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है।
हत्या के बाद घटनास्थल के हालात पर पर्दा डालने जैसी कोशिशें और बैतुल्लाह महसूद के हत्यारे गिरोह को पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराने जैसा सरकारी रवैया भी यही साबित करता है।
आयोग का गठन हालांकि तथ्य जुटाने के लिए किया गया था, लेकिन दोषी ठहराने और नतीजे निकालने में उसने जबर्दस्त उदारता बरती है। ये नतीजे वैसे तो उच्च पदों पर तैनात लोगों के खिलाफ दिखाई देते हैं पर असल में हत्या में लिप्तता के लिए सेना और खुफिया एजेंसियों के समूचे ढांचे को ही कटघरे में खड़ा करते हैं।
रिपोर्ट के लेखकों ने कुशल शोधकर्ताओं की तरह हत्या के पुराने अनसुलझे मामलों का हवाला देते हुए अपने नतीजे निकाले हैं, दरअसल ‘फैसले’ दिए हैं। रिपोर्ट में बलूच राष्ट्रवादी नेताओं की विवादित हत्या का हवाला दिया गया है। एक महत्वपूर्ण घरू मसला होने के बावजूद इसका श्रीमती भुट्टो की हत्या से कोई संबंध नहीं था।
रिपोर्ट में इसे शामिल करने का एकमात्र यही कारण समझ में आता है कि इन हत्याओं से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के कर्ता-धर्ताओं का नाम जोड़ा जाता रहा है और ऐसा कहने वालों में बलूच राष्ट्रवादी गुट मुख्य रहे हैं।
शुरू से लेकर आखिरी पन्ने तक आयोग सुझावों और संकेतों की भरमार के साथ ज्ञात तथ्यों को चतुराईपूर्वक जोड़ते हुए ‘बदमाश शासन तंत्र’ के अपने तर्क को सिद्ध कर देना चाहता है। रिपोर्ट में आयोग की मूलभूत स्थापना यही है कि पूर्व में हुई हत्याएं और श्रीमती भुट्टो की हत्या ‘राजनीतिक हत्याओं’ की श्रेणी में आती हैं।
इसका यही नतीजा निकलता है कि हत्याओं के लिए वे लोग जिम्मेदार हैं, जो उस वक्त सत्ता में रहे थे। (रिपोर्ट में इस पर केंद्रित हिस्से का शीषर्क है ‘पाकिस्तान में राजनीतिक हत्याएं और दंडमुक्ति’)। यह निष्कर्ष पाकिस्तान में प्रचलित अवधारणा से मेल खाता है। इसमें बैठकखानों और गलियों-नुक्कड़ों पर होने वाली फुसफुसाहटों की भी गूंज है, जो अपने आकलनों में हमेशा ही गलत नहीं होती।
देखा जाए तो जनरल परवेज मुशर्रफ और राजनीतिक सत्ता के उनके सहयोगियों पर दोष मढ़ना अब कोई नई बात नहीं रह गई है। लेकिन आयोग की रिपोर्ट महज चंद शीर्षस्थ लोगों को ही संदेह के दायरे में खड़ा नहीं करती। रिपोर्ट में ब्योरों के साथ जो कहानी गढ़ी गई है, उसके मुताबिक ये घटनाएं संस्थागत मिलीभगत और षडच्यंत्र के बिना मुमकिन नहीं थीं।
जनरल मुशर्रफ पर दोषारोपण करते हुए आयोग उनकी समूची टीम को कटघरे में खड़ा कर देता है, जिसमें आईएसआई के पूर्व डायरेक्टर जनरल और वर्तमान सैन्य प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी, उनके उत्तराधिकारी और वर्तमान में गुजरांवाला के काप्र्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नदीम ताज, एमआई के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल मेजर जनरल नदीम एजाज, जो वर्तमान में गुजरांवाला के लॉग एरिया कमांडर हैं, समेत अन्य सैन्य उच्चधिकारी शामिल हैं।
आयोग ने इन अधिकारियों के कामों का वर्णन ज्यादातर काली स्याही से किया है। उनकी कार्रवाइयों को हत्या के एक सुनियोजित किंतु जल्दबाजी में पूरे किए गए षडच्यंत्र का हिस्सा बताया है। रिपोर्ट के पेज ३क्, पैरा १२क् में यह बात बखूबी कही गई है। रिपोर्ट में आईएसआई के तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर जनरल मेजर जनरल नुसरत नईम को झूठा बताया गया है।
आयोग के अनुसार उन्होंने पहले तो इससे इनकार किया कि उन्होंने अस्पताल प्रबंधन को श्रीमती भुट्टो की मृत्यु की पुष्टि करने को कहा था, लेकिन बाद में दबाव बनाए जाने पर उन्होंने स्वीकार किया कि आला अधिकारियों को जानकारी देने से पहले उन्होंने सीधे प्रोफेसर मुसादिक से श्रीमती भुट्टो की मृत्यु की पुष्टि की थी। इसी तरह पेज ३३, पैरा १३३ पर एक अन्य अत्यंत विवादित मसले को निष्पक्ष तथ्य की तरह प्रस्तुत किया गया है।
अज्ञात स्रोतों का हवाला देते हुए रिपोर्ट यह भी कहती है कि नगर पुलिस प्रमुख सऊद अजीज ने घटनास्थल की साफ-सफाई का फैसला स्वतंत्र रूप से करने के बजाय सैन्य मुख्यालय (जनरल कियानी के कमांड सेंटर) के निर्देश के बाद ऐसा किया। एक अन्य अनाम स्रोत के हवाले से यह फैसला जनरल नदीम एजाज का बताया गया है। इसी पैरे में पुलिस अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि आदेश किसने दिए, ‘सभी को पता है’।
रिपोर्ट के ये अंश ‘हत्या के मामले में धमकियां और संभावित जिम्मेदारी’ शीर्षक अध्याय के साथ पढ़ने पर पाक सेना और खुफिया एजेंसियों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मुकदमे की दलील तैयार करते हैं।
पैरा २क्१, पेज ४७ में आयोग की रिपोर्ट इंटरनेशनल क्रायसिस ग्रुप जैसी संस्थाओं के त्रैमासिक मूल्यांकनों का स्वरूप अख्तियार कर लेती है। अपने घोषित अधिकार का उल्लंघन करते हुए आयोग यह अनुमान भी लगाने लगता है कि जिहादी समूहों द्वारा पाकिस्तानी तंत्र के कुछ तत्वों से गठजोड़ कर लिया गया था और अपराध के ये साझेदार श्रीमती भुट्टो की सत्ता में संभावित वापसी से चिंतित थे।
हैरानी की बात तो यह है कि आयोग महज कुछ ‘तत्वों’ पर ही अंगुलियां नहीं उठाता। अगले पृष्ठ पर आयोग पाकिस्तानी तंत्र की बहुत व्यापक परिभाषा पेश करता है: ‘पाकिस्तानी तंत्र के केंद्र में सैन्य उच्चाधिकारी और खुफिया एजेंसियां हैं और वे ही उसके सर्वाधिक स्थायी और प्रभावी घटक हैं।’
रिपोर्ट का यह पहलू यकीनन उसे हाल में प्रस्तुत दस्तावेजों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण साबित करता है। एक ऐसा दस्तावेज, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तानी तंत्र के खिलाफ वर्तमान और भविष्य की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मुहिमों में संदर्भ की तरह किया जा सकता है।
लेखक पाकिस्तानी चैनल ‘आज टेलीविजन’ के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं।
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पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच करने के लिए बनाए गए संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग की रिपोर्ट से यह साफ है कि उसका मंतव्य न तो निष्पक्ष है और न ही ‘गैरराजनीतिक’। यह एक ऐसा दस्तावेज है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तानी तंत्र के खिलाफ वर्तमान और भविष्य की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मुहिमों में संदर्भ की तरह किया जा सकता है।लाख कोशिशों के बाद भी जो काम न वॉशिंगटन कर सका और न नई दिल्ली, वह एक छोटे से स्टाफ वाले तीन सदस्यीय आयोग ने कर दिखाया।
विडंबना तो यह है कि आयोग पाकिस्तान के करदाताओं के धन से चलता है और इसे मुल्क के राष्ट्रपति का अनुमोदन हासिल है। आयोग ने पाकिस्तान की फौज, आईएसआई, एमआई और आईबी जैसी तमाम खुफिया एजेंसियों, रिटायर्ड अफसरों व पुलिस महकमे के लोगों की कुख्यात छाया हुकूमत को अंतत: औपचारिक रूप से एक बदमाश शासन तंत्र का हिस्सा घोषित कर दिया है। एक ऐसा शासन तंत्र, जो न केवल अंतरराष्ट्रीय अव्यवस्था को जन्म देता है, बल्कि अपने ही नेताओं की हत्या करने से भी नहीं चूकता।
यह विनाशकारी निष्कर्ष पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच के लिए बनाए गए संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग की रिपोर्ट का है, जो शुरू से आखिर तक इसे साबित करने के लिए जी-जान एक कर देती है। जिस प्रेस कांफ्रेंस में यह रिपोर्ट जारी की गई, उसमें आयोग ने अपने को निष्पक्ष बताने पर खासा जोर दिया था।
लेकिन अगर रिपोर्ट और उसके मंतव्यों को ध्यान से पढ़ें तो साफ हो जाता है कि उसका संदेश न तो निष्पक्ष है और न ही ‘गैरराजनीतिक’। सरकारी सुरक्षा योजनाओं जैसे फैसलों और श्रीमती भुट्टो की हत्या के बीच की कड़ियों को जिस तरह जोड़ा गया है, उससे भी यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है।
हत्या के बाद घटनास्थल के हालात पर पर्दा डालने जैसी कोशिशें और बैतुल्लाह महसूद के हत्यारे गिरोह को पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराने जैसा सरकारी रवैया भी यही साबित करता है।
आयोग का गठन हालांकि तथ्य जुटाने के लिए किया गया था, लेकिन दोषी ठहराने और नतीजे निकालने में उसने जबर्दस्त उदारता बरती है। ये नतीजे वैसे तो उच्च पदों पर तैनात लोगों के खिलाफ दिखाई देते हैं पर असल में हत्या में लिप्तता के लिए सेना और खुफिया एजेंसियों के समूचे ढांचे को ही कटघरे में खड़ा करते हैं।
रिपोर्ट के लेखकों ने कुशल शोधकर्ताओं की तरह हत्या के पुराने अनसुलझे मामलों का हवाला देते हुए अपने नतीजे निकाले हैं, दरअसल ‘फैसले’ दिए हैं। रिपोर्ट में बलूच राष्ट्रवादी नेताओं की विवादित हत्या का हवाला दिया गया है। एक महत्वपूर्ण घरू मसला होने के बावजूद इसका श्रीमती भुट्टो की हत्या से कोई संबंध नहीं था।
रिपोर्ट में इसे शामिल करने का एकमात्र यही कारण समझ में आता है कि इन हत्याओं से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के कर्ता-धर्ताओं का नाम जोड़ा जाता रहा है और ऐसा कहने वालों में बलूच राष्ट्रवादी गुट मुख्य रहे हैं।
शुरू से लेकर आखिरी पन्ने तक आयोग सुझावों और संकेतों की भरमार के साथ ज्ञात तथ्यों को चतुराईपूर्वक जोड़ते हुए ‘बदमाश शासन तंत्र’ के अपने तर्क को सिद्ध कर देना चाहता है। रिपोर्ट में आयोग की मूलभूत स्थापना यही है कि पूर्व में हुई हत्याएं और श्रीमती भुट्टो की हत्या ‘राजनीतिक हत्याओं’ की श्रेणी में आती हैं।
इसका यही नतीजा निकलता है कि हत्याओं के लिए वे लोग जिम्मेदार हैं, जो उस वक्त सत्ता में रहे थे। (रिपोर्ट में इस पर केंद्रित हिस्से का शीषर्क है ‘पाकिस्तान में राजनीतिक हत्याएं और दंडमुक्ति’)। यह निष्कर्ष पाकिस्तान में प्रचलित अवधारणा से मेल खाता है। इसमें बैठकखानों और गलियों-नुक्कड़ों पर होने वाली फुसफुसाहटों की भी गूंज है, जो अपने आकलनों में हमेशा ही गलत नहीं होती।
देखा जाए तो जनरल परवेज मुशर्रफ और राजनीतिक सत्ता के उनके सहयोगियों पर दोष मढ़ना अब कोई नई बात नहीं रह गई है। लेकिन आयोग की रिपोर्ट महज चंद शीर्षस्थ लोगों को ही संदेह के दायरे में खड़ा नहीं करती। रिपोर्ट में ब्योरों के साथ जो कहानी गढ़ी गई है, उसके मुताबिक ये घटनाएं संस्थागत मिलीभगत और षडच्यंत्र के बिना मुमकिन नहीं थीं।
जनरल मुशर्रफ पर दोषारोपण करते हुए आयोग उनकी समूची टीम को कटघरे में खड़ा कर देता है, जिसमें आईएसआई के पूर्व डायरेक्टर जनरल और वर्तमान सैन्य प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी, उनके उत्तराधिकारी और वर्तमान में गुजरांवाला के काप्र्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नदीम ताज, एमआई के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल मेजर जनरल नदीम एजाज, जो वर्तमान में गुजरांवाला के लॉग एरिया कमांडर हैं, समेत अन्य सैन्य उच्चधिकारी शामिल हैं।
आयोग ने इन अधिकारियों के कामों का वर्णन ज्यादातर काली स्याही से किया है। उनकी कार्रवाइयों को हत्या के एक सुनियोजित किंतु जल्दबाजी में पूरे किए गए षडच्यंत्र का हिस्सा बताया है। रिपोर्ट के पेज ३क्, पैरा १२क् में यह बात बखूबी कही गई है। रिपोर्ट में आईएसआई के तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर जनरल मेजर जनरल नुसरत नईम को झूठा बताया गया है।
आयोग के अनुसार उन्होंने पहले तो इससे इनकार किया कि उन्होंने अस्पताल प्रबंधन को श्रीमती भुट्टो की मृत्यु की पुष्टि करने को कहा था, लेकिन बाद में दबाव बनाए जाने पर उन्होंने स्वीकार किया कि आला अधिकारियों को जानकारी देने से पहले उन्होंने सीधे प्रोफेसर मुसादिक से श्रीमती भुट्टो की मृत्यु की पुष्टि की थी। इसी तरह पेज ३३, पैरा १३३ पर एक अन्य अत्यंत विवादित मसले को निष्पक्ष तथ्य की तरह प्रस्तुत किया गया है।
अज्ञात स्रोतों का हवाला देते हुए रिपोर्ट यह भी कहती है कि नगर पुलिस प्रमुख सऊद अजीज ने घटनास्थल की साफ-सफाई का फैसला स्वतंत्र रूप से करने के बजाय सैन्य मुख्यालय (जनरल कियानी के कमांड सेंटर) के निर्देश के बाद ऐसा किया। एक अन्य अनाम स्रोत के हवाले से यह फैसला जनरल नदीम एजाज का बताया गया है। इसी पैरे में पुलिस अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि आदेश किसने दिए, ‘सभी को पता है’।
रिपोर्ट के ये अंश ‘हत्या के मामले में धमकियां और संभावित जिम्मेदारी’ शीर्षक अध्याय के साथ पढ़ने पर पाक सेना और खुफिया एजेंसियों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मुकदमे की दलील तैयार करते हैं।
पैरा २क्१, पेज ४७ में आयोग की रिपोर्ट इंटरनेशनल क्रायसिस ग्रुप जैसी संस्थाओं के त्रैमासिक मूल्यांकनों का स्वरूप अख्तियार कर लेती है। अपने घोषित अधिकार का उल्लंघन करते हुए आयोग यह अनुमान भी लगाने लगता है कि जिहादी समूहों द्वारा पाकिस्तानी तंत्र के कुछ तत्वों से गठजोड़ कर लिया गया था और अपराध के ये साझेदार श्रीमती भुट्टो की सत्ता में संभावित वापसी से चिंतित थे।
हैरानी की बात तो यह है कि आयोग महज कुछ ‘तत्वों’ पर ही अंगुलियां नहीं उठाता। अगले पृष्ठ पर आयोग पाकिस्तानी तंत्र की बहुत व्यापक परिभाषा पेश करता है: ‘पाकिस्तानी तंत्र के केंद्र में सैन्य उच्चाधिकारी और खुफिया एजेंसियां हैं और वे ही उसके सर्वाधिक स्थायी और प्रभावी घटक हैं।’
रिपोर्ट का यह पहलू यकीनन उसे हाल में प्रस्तुत दस्तावेजों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण साबित करता है। एक ऐसा दस्तावेज, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तानी तंत्र के खिलाफ वर्तमान और भविष्य की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मुहिमों में संदर्भ की तरह किया जा सकता है।
लेखक पाकिस्तानी चैनल ‘आज टेलीविजन’ के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं।
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर