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अजीब सी उलझन में है ये मन


अजीब सी उलझन में है ये मन
अजीब सा ये एहसास है
उम्र के इस मौड़ पर
क्या किसी के आगमन का ये आभास है
क्यों अब ये दिल जोर जोर से धड़कता है
क्यों हर पल उसकी ही सोचो का दायरा है
हर पल ऐसा लगे कि वो मेरे साथ है
क्या उसे भी मेरी तरह इस बात का एहसास है
कि है कोई जो इस दिल के तारो को अब झनझनाता सा है आ आ कर सपनो में अब वो जगाता सा है
क्यों वो धीरे धीरे मेरे लिए ही गुनगुनाता सा है
अजीब सी उलझन में है ये मन.............
क्यों मै अब नए सपने बुनने लगी हूँ
क्यों इस नयी इस दुनिया में विचरने लगी हूँ
क्यों खुद से ही मै बाते करने लगी हूँ
अरमानो के पंख लगा ...
लो उड़ चला अब मेरा मन
क्यों प्यार के इस नए एहसास से अब मन डरा डरा सा है
मेरे मन और तन कि भाषा
अब बदली बदली सी है
मेरी आँखों में अब नए सपनो कि दुनिया
अब सजी सजी सी है
है बदलाव का नया नया दौर ये
क्यों मै तरु सी खुद में ही अब
सिमटी सिमटी सी हूँ
अजीब सी उलझन में है ये मन.............
(..कृति..अंजु..(अनु..)

Comments

  1. bahut sunder likhti hai aap anju ji ...kafi umda rachna hai aapki jitni tareef ki jaaye ..har ek line me ajeeb kashish hai ...
    bahut khoob...waqt nikaalkar hamare blogs ka darshan kare aur apni tipanniyon se do chaar karein hamara saubhagya hoga...

    http://aleemazmi.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. aapne padh..or aapko accha laga...ye hi bahut hai mere liye ...shukriya dost

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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