प्यार हमारा
जिसका कोई रूप नहीं है
जिसकी कोई भाषा ,कोई बोली नहीं है
जो समझता है दिल कि ही बातो को
एहसास है तो सिर्फ साथ बंध जाने का
तमन्ना है तो अब साथ निभाने की
हम तो एक पत्थर है उस रस्ते के
जिस से महोब्बत के महल बना करते है
एह खुदा मेरे
मुझे ऐसी अदा से नवाज़ा कि
महोब्बत का जनुन जब दिल में बसता है
तो इस दिल में एक अजीब सा तुफ्फान सा उठता है
इतने से काफी हो जाये ये सबब ..एह खुदा
कि इश्क कि तनहा साँसे भी मुझे महका देती है
उनकी यादे के साये जब घेर के मंडराते है
तो चिराग महोब्बत के ही उनके मेरे इर्द गिर्द मंडराते है
प्यार हमारा
जिसका कोई रूप नहीं है..........
(..कृति ..अंजु...अनु...)
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--- संजय सेन सागर