अनिरुद्ध शर्मा
नई दिल्ली. साहित्य अकादमी पुरस्कार समारोह में तेलुगू लेखक वाई लक्ष्मीप्रसाद की रचना ‘द्रोपदी’ को लेकर हिंदू मंच नामक संगठन ने जमकर हंगामा किया। इनका आरोप था कि इस उपन्यास में द्रोपदी के चरित्र को गलत व अपमानित तरीके से पेश किया गया है।
पुरस्कार वितरण के क्रम में जैसे ही तेलुगू लेखक वाई लक्ष्मी प्रसाद का नाम लिया गया, संगठन के लोग अपनी सीटों पर खड़े होकर नारेबाजी करने लगे और द्रोपदी उपन्यास के विरोध की तख्तियां हवा में लहराने लगे। इतना ही नहीं, कार्यकर्ता मंच के करीब आ पहुंचे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें मंच पर चढ़ने से रोका। कुछ ही देर में समारोह में व्यवधान डालने वालों को पुलिस की मदद से सभागार से बाहर कर दिया गया, लेकिन वे सभागार के बाहर भी खड़े होकर नारे लगाते रहे और विरोध प्रदर्शन जारी रखा। उधर, हंगामा शांत होने के बाद समारोह शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ।
कार्यक्रम के बाद लेखक लक्ष्मी प्रसाद ने कहा कि चार लोगों के हंगामा करने से वे डरने वाले नहीं हैं। वे अब तक 32 किताबें लिख चुके हैं। द्रोपदी उपन्यास के जरिए उनका उद्देश्य ही द्रोपदी को महान रूप देना था। यह किताब पिछले तीन वर्ष से बाजार में हैं, इसके चार-चार संस्करण आ चुके हैं, टीवी पर सीरियल बनकर प्रसारित हो चुका है।
पुरस्कार के समय इस तरह का विरोध बेतुका है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भालचंद निमेता ने कहा कि साहित्य अकादमी की चयन प्रक्रिया परफेक्ट है। यह पुरस्कार किसी भी रचना व रचनाकार का सच्ची पहचान है। अकादमी के अध्यक्ष सुनील गंगोपाध्याय ने कहा कि चयन के लिए पैनल बना था और कृति के सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही उसे पुरस्कार के लिए चुना गया। सचिव अग्रहर कृष्णामूर्ति ने कहा कि कोई भी लेखक अपनी कृति में अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र है।
पुरस्कार वितरण समारोह कार्यक्रम में हिंदी के कवि व चिंतक कैलाश वाजपेयी सहित मौजूद 20 रचनाकारों को अकादमी पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपए नकद, एक दुशाला व ताम्रपत्र प्रदान किया गया। वर्ष 2009 के लिए जिन 24 रचनाओं को पुरस्कार के लिए चुना गया, उनमें से द्रोपदी उपन्यास भी एक है। वोडो व मैथली रचनाकारों को मरणोपरांत यह पुरस्कार दिया गया, उनके पुत्रों ने यह पुरस्कार प्राप्त किया। गुजराती रचनाकार शिरीष पंचाल ने संदेश भेजकर कहा कि वे इस तरह के किसी समारोह में हिस्सा नहीं लेते हैं, लेकिन उन्होंने पुरस्कार को अस्वीकार नहीं किया था। इसी तरह अंग्रेजी रचनाकार बद्रीनाथ चतुर्वेदी की पुत्री उनके स्थान पर पुरस्कार लेने पहुंची थीं।
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नई दिल्ली. साहित्य अकादमी पुरस्कार समारोह में तेलुगू लेखक वाई लक्ष्मीप्रसाद की रचना ‘द्रोपदी’ को लेकर हिंदू मंच नामक संगठन ने जमकर हंगामा किया। इनका आरोप था कि इस उपन्यास में द्रोपदी के चरित्र को गलत व अपमानित तरीके से पेश किया गया है।
पुरस्कार वितरण के क्रम में जैसे ही तेलुगू लेखक वाई लक्ष्मी प्रसाद का नाम लिया गया, संगठन के लोग अपनी सीटों पर खड़े होकर नारेबाजी करने लगे और द्रोपदी उपन्यास के विरोध की तख्तियां हवा में लहराने लगे। इतना ही नहीं, कार्यकर्ता मंच के करीब आ पहुंचे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें मंच पर चढ़ने से रोका। कुछ ही देर में समारोह में व्यवधान डालने वालों को पुलिस की मदद से सभागार से बाहर कर दिया गया, लेकिन वे सभागार के बाहर भी खड़े होकर नारे लगाते रहे और विरोध प्रदर्शन जारी रखा। उधर, हंगामा शांत होने के बाद समारोह शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ।
कार्यक्रम के बाद लेखक लक्ष्मी प्रसाद ने कहा कि चार लोगों के हंगामा करने से वे डरने वाले नहीं हैं। वे अब तक 32 किताबें लिख चुके हैं। द्रोपदी उपन्यास के जरिए उनका उद्देश्य ही द्रोपदी को महान रूप देना था। यह किताब पिछले तीन वर्ष से बाजार में हैं, इसके चार-चार संस्करण आ चुके हैं, टीवी पर सीरियल बनकर प्रसारित हो चुका है।
पुरस्कार के समय इस तरह का विरोध बेतुका है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भालचंद निमेता ने कहा कि साहित्य अकादमी की चयन प्रक्रिया परफेक्ट है। यह पुरस्कार किसी भी रचना व रचनाकार का सच्ची पहचान है। अकादमी के अध्यक्ष सुनील गंगोपाध्याय ने कहा कि चयन के लिए पैनल बना था और कृति के सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही उसे पुरस्कार के लिए चुना गया। सचिव अग्रहर कृष्णामूर्ति ने कहा कि कोई भी लेखक अपनी कृति में अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र है।
पुरस्कार वितरण समारोह कार्यक्रम में हिंदी के कवि व चिंतक कैलाश वाजपेयी सहित मौजूद 20 रचनाकारों को अकादमी पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपए नकद, एक दुशाला व ताम्रपत्र प्रदान किया गया। वर्ष 2009 के लिए जिन 24 रचनाओं को पुरस्कार के लिए चुना गया, उनमें से द्रोपदी उपन्यास भी एक है। वोडो व मैथली रचनाकारों को मरणोपरांत यह पुरस्कार दिया गया, उनके पुत्रों ने यह पुरस्कार प्राप्त किया। गुजराती रचनाकार शिरीष पंचाल ने संदेश भेजकर कहा कि वे इस तरह के किसी समारोह में हिस्सा नहीं लेते हैं, लेकिन उन्होंने पुरस्कार को अस्वीकार नहीं किया था। इसी तरह अंग्रेजी रचनाकार बद्रीनाथ चतुर्वेदी की पुत्री उनके स्थान पर पुरस्कार लेने पहुंची थीं।
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर