हंसी केतकी देख कर॥
हंसमुख हुआ सरीर॥
न तो रीति थी॥
न बना समय विपरीत॥
भ्रमर अधिक आतुर था प्यासा॥
सूझ गयी क्या प्रीति॥
कलया कैसे ढँक गयी॥
रचना रची रंगीन॥
विनय किया हे पवन तुम॥
बह लो मेरे अधीन॥
आज पवन रस बरषे गा॥
आतुल ब्याकुल हीन भ्रमर भीर॥
आय कली में गरजे गा॥
हंसमुख हुआ सरीर॥
न तो रीति थी॥
न बना समय विपरीत॥
भ्रमर अधिक आतुर था प्यासा॥
सूझ गयी क्या प्रीति॥
कलया कैसे ढँक गयी॥
रचना रची रंगीन॥
विनय किया हे पवन तुम॥
बह लो मेरे अधीन॥
आज पवन रस बरषे गा॥
आतुल ब्याकुल हीन भ्रमर भीर॥
आय कली में गरजे गा॥
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--- संजय सेन सागर