Skip to main content

बापू

बापू


कन्हैयालाल सेठिया

महात्मा गांधी रै सुरगवास माथै देस री कांई दसा व्ही। सगळै जीव जगत माथै उण महान आत्मा रै गमन रौ कांई असर व्हीयो, उणरौ वर्णन कवि सेठिया री रचना मे घणौ मर्मस्पर्शी शब्दां में मिळै। जात-पांत रा भेद नै मेटण वाळौ, मिनख मातर रौ सांचो मींत, महात्मा गांधी जैड़ा अवतारी इण धरती माथै आया न कोई आवै। एक गांधी रै मिटण सूं सगळा री आँख्यां में आँसू है। मरतो-मरतो ई गांधी एकता रौ पाठ पढ़ाय ग्यौ।




आभै में उड़ता खग थमग्या
गेलै में बैंता पग थमग्या
हाको सो फूट्यो धरती पर
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

ओ मिनख मरयो'क मरयो पाखी?
सै साथै नाड़ कियां नाखी?
बा सिर कूटै है हिंदुआणी
बा झुर झुर रोवै तुरकाणी।

इसड़ो कुण सजन सनेही हो
सगळां रा हिवड़ा डगमगग्या।
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

मिनखां रो रुळग्यो मिनखपणो
देवां री मिटगी संकळाई,
बापूजी सुरग सिधार गया
हूणी रै आडी के आई?

जीऊंला सौ'र पचीस बरस
बिसवास दिरा'र किंया ठगग्या?
गिगनार पडै़ लो अब नीचै
सतवादी वचनां स्यूं डिगग्या
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

बापू सा मिनखां देही में
धरती पर मिनख नहीं आया,
आगै री पीढ्यां पूछै ली-
के इस्या नखतरी जुग जाया?

ई एक जोत रै पळकै स्यूं
इतिहास सदा नै जगमगग्या
ईं एक मौत रै मोकै पर
सगळां रा आंसू रळ मिलग्या,
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा