उज्जैन से 20 किमी दूर छोटे से गांव कांकरिया चीराखान में नए दशक की उम्मीदें आकार ले रही हैं। यहां एक छोटे से वर्कशॉप में सिर झुकाए, हाथों में ग्रीस लगाए राधेश्याम शर्मा एक ऐसी मशीन बनाने में जुटे हैं जो बिना बिजली या डीजल के 24 घंटे बोरवेल से पानी खींचेगी। इस प्रयोग के सफल होने पर न केवल बिजली की कमी से जूझ रहे लाखों किसानों को फायदा होगा, बल्कि प्रदूषण न होने के कारण पर्यावरण की सेहत भी सुधरेगी।
शर्मा बताते हैं, यह मशीन न तो खराब होगी, न ही इसमें कोई अतिरिक्त खर्च होगा। यानी बिजली, डीजल, मोटरपंप की मरम्मत के बार-बार के खर्च से हमेशा के लिए छुटकारा। शर्मा की मानें तो हवा और पानी के दबाव से चलने वाली यह मशीन 24 घंटे पानी देती रहेगाी। इसकी लागत 50 हजार से एक लाख रुपए के बीच आने का अनुमान है। एक स्थानीय बैंक ने इसके लिए उन्हें आर्थिक मदद देने का भरोसा दिया है। महज हायर सेकंडरी तक पढ़े राधेश्याम को इंजीनियरिंग विरासत में मिली है। उनके पिता जगदीशचंद शर्मा मोटर मैकेनिक रह चुके हैं, ताऊ भी गांव में ही मशीनें सुधारने के लिए वर्कशॉप चलाते हैं।
ग्रामीणों और किसानों की मशीनें ठीक करते-करते राधेश्याम कब इनोवेटर बन गए, उन्हें पता ही नहीं चला। महज 31 साल के राधेश्याम इस समूचे क्षेत्र में कृषि उपकरणों का आविष्कारक माने जाते हैं। वे ऐसे उपकरण बनाने में जुटे हुए हैं, जो किसान को सहूलियत दें, समय और पैसा भी बचाए, साथ ही बिजली और डीजल की खपत भी रोकें।
वे एक ऐसी मशीन भी बनाना चाहते हैं, जो बोरवेल में फंसी मोटर निकाल सके। इसके लिए वे जीप का प्रयोग करेंगे। मशीन बनाने का काम अभी पूरा नहीं हुआ है लेकिन उन्होंने जीप जरूर खरीद ली है। वे इससे पहले बैलचलित छिड़काव वाली मशीन बना चुके हैं। यह दवा छिड़काव के साथ निदाई के काम भी आती है। वे बताते हैं, मजदूरों पर 1000 रु. खर्च करने पर जितना काम होता है, उतना काम यह मशीन 200 रु. के खर्च में कर देती है। वे अब तक ऐसी 17 मशीनें बेच चुके हैं।’
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--- संजय सेन सागर