प्रिय मित्रों,
श्री योगेश छिब्बर ने एक कहानी लिखी है जो कुछ यों शुरु होती है -
पापा:
आपके पिता होने में न सुंदरता है, न कोमलता, न कोई मीठा गीत। आपकी बेटी होना अपमान है, अपराध है, पाप है; आप मेरे स्त्री होने की सुंदरता पर हावी नहीं हो सकते। इसीलिए मैं आपको अपनी बाक़ी ज़िंदगी में से घटा देना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ आप शून्य हो जाएँ, मेरे वजूद में से बाहर हों, ताकि मैं खूबसूरत और मुकम्मल हो सकूँ।
श्री योगेश छिब्बर की पूरी कहानी यहां प्रकाशित हुई है व इस कहानी पर प्रतिक्रिया भी ।
जहां तक, इस कहानी का संबंध है, मैं इसे पसन्द नहीं कर पा रहा हूं। फर्क दृष्टिकोण का है। मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर योगेश छिब्बर पाठकों को इस कहानी के माध्यम से संदेश क्या देना चाह रहे हैं। जो संदेश मुझे इस कहानी से मिलता प्रतीत हो रहा है वही यदि इस कहानी का वास्तविक संदेश है तो मुझे यह संदेश न तो जनहित में लगता है और न ही स्वीकार्य ही है।
- सुशान्त सिंहल
आप भी इसे पढ़ें व अपनी प्रतिक्रिया दें तो यह सार्थक संवाद आगे बढ़ सकेगा ।
सुशान्त सिंहल
हिंदी कहानी के लिए http://connected.jimdo.com
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