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गीतिका: तितलियाँ --संजीव 'सलिल'

गीतिका

तितलियाँ

संजीव 'सलिल'
*
यादों की बारात तितलियाँ.

कुदरत की सौगात तितलियाँ..

बिरले जिनके कद्रदान हैं.

दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..

नाच रहीं हैं ये बिटियों सी

शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..

बद से बदतर होते जाते.

जो, हैं वे हालात तितलियाँ..

कली-कली का रस लेती पर

करें न धोखा-घात तितलियाँ..

हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं

क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..

'सलिल' भरोसा कर ले इन पर

हुईं न आदम-जात तितलियाँ..

*********************************

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

Comments

  1. वाह सर जी बहुत सुंदर प्रस्तुति इसको पढ़कर मेरे ब्लॉग पर लगी एक पुरानी कविता याद आगई उसकी शुरू की कुछ पंक्तियाँ लिख रही हूँ शायद आपको पसंद आयें

    इस दुनिया में पहली बार जब आयीं थीं वो नन्हीं सी उंगलियाँ
    आने से उनके यूँ लगा फूल बरसा रहीं थीं,
    वादियाँ,
    जिस तरफ प्यार से उठती थीं, वो नन्हीं सी
    उंगलियाँ।
    आने को उनके पास तरसतीं थीं,
    तितलियाँ.
    गालों पे मेरे जब प्यार से जब चलती थीं वो नन्हीं सी
    उंगलियाँ।
    आखों में उनकी होती थी गज़ब की वो
    शोखियाँ।

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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