Skip to main content

नाली साफ करा दो, लोग गिरने वाले हैंःःःःःःःःःःःःःःःःः

पियक्कड़ों की हर नुक्कड़ में लगेंगी महफिलें
लड़खड़ाते कदमों का नाली ही मुकाम होगा।।

नया साल शुरू होने वाला है। उसका सुरूर छाने लगा है। लोगों ने रात का कोटा एक रात पहले ही रख लिया है। पुलिस कहती है दस बजे के बाद पियोगे तो पेलेंगे। हम कहते हैं रोक के दिखाओ। साले हम तो जरूर पिएंगे। कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।
अबे खुशी तो असली हम ही मनाएंगे। तुम, पालक खाने वालों क्या जानो नए साल की खुशी। पुराने साल भी आलू खाई थी और नए साल में भी आलू ही खाओगे। कभी पनीर का टुकड़ा मुंह में गिर गया तो खुशी का लम्हा मान लिया। अबे हमसे सीखो भले ही भीख मांगनी पड़े, लेकिन चिली पनीर से नीचे समझौता नहीं करते हैं। तुम साले क्या जानो मुर्गे और लेग पीस का जायका। मछली, झोर और रायता। अण्डा करी और मक्खन का तड़का। आलू खाने वाले क्या समझेंगे इसका मर्म। ऐसों को तो भगवान ने भी नहीं छोड़ा इसीलिये तो यमराज रूपी महंगाई को इनके पीछे छोड़ दिया। अब बेटा दाल खा के दिखाओ। हम भी देखें। थाली में कितनी सब्जी ले रहे हो जरा बताओ। विटामिन की कमी हो रही है। आयरन पूरा नहीं मिल रहा है। हड्डियां आवाज करने लगी हैं। जरा सी हवा चली नहीं कि नजला हो गया। अब सर्दी तीन दिन से पहले थोड़े ही जाएगी। तब तक तो उसे परिवार में बांट दोगे क्योंकि कसम खाई है कि रूमाल मुंह में नहीं रखोगे।
पुराना साल कई वादों, इरादों में ही बीत गया। अब बेटा नए साल में क्या करना है। पापा कसम सच बता रहे हैं सुरीली का गाना तो नहीं सुनेंगे। कुछ कमाल ही करेंगे। अबे कहने से काम नहीं चलेगा, कुछ करना भी पड़ेगा। वरना नया साल भी निकल जाएगा और पता भी नहीं चल पाएगा। और बेटा सच तो ये ही है कि अभी पालक खा लो वरना ’नशीला पानी’ लीवर खराब कर देगा और इसी पालक, मूंग से ही जीवन जीना पड़ेगा। तब सालों अफसोस करोगे कि ’पानी’ क्यों पिया, पालक ही पी लेते। चलो, समझो तो भला नहीं तो रामभला। मैं भी कोशिश ही कर सकता हूं। तुम्हारे ही शब्दों में प्रयास किया है। नहीं तो कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।

नया साल सभी के लिए मंगल होःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः

हार्दिक शुभकामनाएंःःःःःःःःःःःःःःः

-ज्ञानेन्द्र

Comments

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा