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HAMARI AYODHYA..




हमारी अयोध्या ....


अयोध्या से महज ३२ किलोमीटर दूर मेरा गांव है बचपन से ही अयोध्या से धार्मिक व पारम्परिक नाता जुड़ गया मेला ठेला नहान परिकर्मा आदि जिन्दगी के अहम् हिस्सों में शामिल हो गए थे !मेरे बचपन में अयोध्या इतनी चर्चित नहीं हुई थी ! जितना की १९९० के बाद हुई !उत्तर परदेश को छोड़ कर किसी प्रान्त में चले जाईये !अयोध्या का नाम लेते ही लोग बाग़ उसका सीधा पता रामजन्म भूमि -बाबरी मस्जिद अपने आप समझ जाते है ! जिस नगर को शांति का प्रतीक माना जाता था वह १९९० के बाद सैनिक छावनी सा नज़र आने लगी !सुरक्षा तामझाम पर अब तक कई करोड़ खर्च हो चुके है आज नजदीक से देखने पर सबको लगता है की यह सुन्दर तीर्थ उजड़कर बिखर रहा है जिस अयोध्या में सभी जातियों के पंच्यती मंदिरों व सभी धर्मो के केन्द्रों पर खुशिया साफ झलकती थी !वंहा अब मायूशी किसी से छुपाये नहीं छुपती है !बर्षो से रंगाई -पुताई को तरश रही भब्य इमारते व पूरा परिबेश बिना कुछ कहे ही सब कुछ कह रहा है !अयोध्या बिबाद के उभार के बाद मेरा जुडाव कुछ जादा ही हो गया !एक पत्रकार के रूप में अयोध्या में हुए तमाम बवाल से लेकर बाबरी विध्वंस भी देखा है !पर लगातार मै अपने बचपन की अयोध्या को ही इस बदलाव के बीच तलाशता रहा ! अयोध्या में लगभग ८ हजार मठ मंदिर है अकेले हिन्दू मंदिरों की संख्या लगभग ५५०० है यंहा की आबादी लगभग ७२००० है !जिनमे से लगभग १२ प्रतिशत मुस्लिम है !यंहा के लोगो का जीवन सदियों से दर्शनार्थियों के भरोशे ही चल रहा है !मंदिरों में चढ़ने वाले धन से ही यंहा असली चमक रहती है !कुछ पंच्यती व बड़े लोगो द्वारा बनवये मंदिरों को छोड़ दे तो बाकि सभी की हालत बदहाल है !भारत के अन्य तीर्थ स्थलों से हट कर अयोध्या सदियों से विसुद्ध धार्मिक अर्थवयवस्था पर टिकी रही !इसकी साझा संस्कृत भी किसी से छिपी नही है !१८५७ की क्रांति में यंहा मुल्ला व संत दोनों को एक साथ फांशी दी गयी थी !अयोध्या सदियों से सर्व-धर्म समभाव का केंद्र रही !यंहा केवल हिन्दू मंदिर ही नही ,बल्कि जैन.बऊद्ध ,सिक्ख ,व मुस्लिमो के धार्मिक स्थान भी है !गुरुनानक देव से लेकर ह्वेनसांग तक यंहा आये थे !यंहा के मेलो की तुलना देश के बहुत ही कम मेलो से की जा सकती है !परन्तु महज़ दो दशको में ही यह नगरी वीरान हो चुकी है !अगर इसे बचाने के साथ मूलस्वरूप में लाने की गम्भीर कोशिस नही की गयी तो आने वाले समय में यंह खंडहरों में तब्दील हो जायेगी ! कुंवर समीर शाही

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...