झर झर झर,
जल बरसावें मेघ;
टप टप बूंद गिरें,
भीजै रे अंगनवा , हो....
आई रे बरखा बहार,हो....।
धडक धडक धड,
धडके हियरवा ,हो॥
आये न सजना हमार..हो...;
आई रे बरखा बहार॥
कैसे सखि झूला सोहै,
कज़री के बोल भावें;
अंखियन नींद नहिं,
ज़ियरा न चैन आवै।
कैसे सोहैंसोलह श्रिन्गार ॥हो...
आये न सजना हमार॥
आये परदेशी घन,
धरती मगन मन;
हरियावे तन,पाय-
पिय का सन्देसवा।
गूंजे नभ मेघ-मल्हा..हो....
आये न सजना हमार॥
घन जब जाओ तुमि,
जल भरने को पुनि;
गरजि गरजि दीजो,
पिय को संदेसवा।
कैसे जिये धनि ये तोहार...हो....
आये न सजना हमार॥हाँ
जल बरसावें मेघ;
टप टप बूंद गिरें,
भीजै रे अंगनवा , हो....
आई रे बरखा बहार,हो....।
धडक धडक धड,
धडके हियरवा ,हो॥
आये न सजना हमार..हो...;
आई रे बरखा बहार॥
कैसे सखि झूला सोहै,
कज़री के बोल भावें;
अंखियन नींद नहिं,
ज़ियरा न चैन आवै।
कैसे सोहैंसोलह श्रिन्गार ॥हो...
आये न सजना हमार॥
आये परदेशी घन,
धरती मगन मन;
हरियावे तन,पाय-
पिय का सन्देसवा।
गूंजे नभ मेघ-मल्हा..हो....
आये न सजना हमार॥
घन जब जाओ तुमि,
जल भरने को पुनि;
गरजि गरजि दीजो,
पिय को संदेसवा।
कैसे जिये धनि ये तोहार...हो....
आये न सजना हमार॥हाँ
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर