दिल्ली से चंडीगढ़ तक ये कैसी हवा चली, किसी के समझ में नहीं आया। हाथ ने ऐसी सफाई की कि जाटलैंड में कमल की पैदावार ही बंद हो गई। गर्मी का भी असर रहा होगा शायद, इसलिए कमल ठंडे पहाड़ों में ही खिल पाया।
हाथी को न तो मैदानी इलाका पसंद और न ही पहाड़ी। सिटी ब्यूटीफुल का मौसम कुछ अलग है। दो-तीन दिन गर्मी रहे तो आसमान पर बादल आ ही जाते हैं। इस बार शुरू में गर्मी थोड़ी ज्यादा रही, बताया गया कि बादल चंडीगढ़ में कम पंजाब में ज्यादा रहे। चंडीगढ़ में तो बरसे तक नहीं। बरसते तो भी क्या फर्क पड़ता। सिटी ब्यूटीफुल ने इस बार दो बातें बड़ी पते की सिखाई हैं।
एक जनता के मूड को जानने का दावा मत करो, कब बदल जाए पता नहीं चलता। फिर रिस्क क्यों लेना भाई। वैसे भी ये बड़े जिगर वालों का काम है। हां, कुछ खालिस चीजें बची हैं, जिन पर भरोसा किया जा सकता है। इनमें टॉप पर है सट्टा और दूसरे नंबर पर ईवीएम (अपनी वोटिंग मशीन)।
दोनों कभी झूठ नहीं बोलते। दर्पण धोखा दे सकता है, लेकिन दोनों पर आप यकीन कर सकते हैं। इसलिए भी क्योंकि सट्टे पर करोड़ों लगाने वाले लाखों लोग यकीन करते हैं और ईवीएम सरकार बनाती और बदलती है। इन दोनों के सामने कोई टिक नहीं पाता। वे भी नहीं जो अपना भविष्य तक नहीं जानते, लेकिन देश के प्रधानमंत्री और अमेरिका का राष्ट्रपति कौन होगा इसके बारे में दो मीटर लंबे फैक्स अखबारों के दफ्तरों में भिजवाते हैं।
बात भरोसे पर चली थी। किस पर किया जाए? चुनाव के दौरान क्या कुछ नहीं कहा गया आपसे। जो लोग कभी का जीतना भूल चुके हैं, जिन्हें खुद की पार्टी पर ही भरोसा नहीं, हर बार पार्टी बदल डालते हैं, जिन्हें अपनों पर भरोसा नहीं, अपने धंधे पर भरोसा नहीं, वे शहर को भरोसा दिलाने चल निकले कि इस बार उनके अलावा जीत किसी और की हो ही नहीं सकती।
बस इसी तरह कॉलोनी और गांवों के कुछ लोगों बरगला लिया। भोले हैं न बेचारे। शहर के तेज तर्रार लोगों को देखिए। कोई नहीं आया इनके झांसे में। नेता जी के बंगले के अगल-बगल रहने वालों तक ने उन्हें वोट नहीं दी। बड़ा भरोसा था इन्हें। और तो और एक नई-नई नेतागिरी सीखे एक शख्स ने अपने यहां 300 लोगों की पेड फौज रख ली। सोचा कि ये लोग प्रचार तो करेंगे ही साथ ही चुनाव वाले दिन के लिए वोट भी बटोर कर ले आएंगे। जैसे नेता जी वैसे ही उनके कारिंदे।
जब तक माल मिलता गया तब तक दोनों का ही भरोसा बना रहा। आप पूछेंगे, नेता जी को माल कैसे मिला, लोग कहते हैं, ये तो माल लुटा रहे थे।
लुटाने वाले को भला कहां मिलता है? अरे साहब आपको पहले भी बताया था, जो दिखता है वैसा होता नहीं। कहते हैं, नेता जी तो नेता जी, इनके गॉड फादर को भी यह चुनाव बड़ा भारी रास आया है। शहर में बड़े लोगों का उपकार किया है गॉड फादर ने। पता नहीं कितने सेठ लोगों की कुंडलियां पड़ी हैं इनके पास। एक सेठ की कुंडली झाड़ो, लाखों बरसते हैं।
चंडीगढ़ के सेठ तो वैसे ही सेवा के लिए तैयार रहते हैं। उम्मीद थी कि गॉड फादर बड़ा जलवा दिखाएंगे। चुनाव में बार-बार यह बात कही भी जा रही थी, लेकिन जब ईबीएम ने नतीजे उगलने शुरू किए तो जो कुछ छिपा था सब बाहर आ गया। तीन सेक्टरों से एक सौ वोट भी नहीं। अब क्या करेंगे नेता जी?
-गप्पी सिंह
हाथी को न तो मैदानी इलाका पसंद और न ही पहाड़ी। सिटी ब्यूटीफुल का मौसम कुछ अलग है। दो-तीन दिन गर्मी रहे तो आसमान पर बादल आ ही जाते हैं। इस बार शुरू में गर्मी थोड़ी ज्यादा रही, बताया गया कि बादल चंडीगढ़ में कम पंजाब में ज्यादा रहे। चंडीगढ़ में तो बरसे तक नहीं। बरसते तो भी क्या फर्क पड़ता। सिटी ब्यूटीफुल ने इस बार दो बातें बड़ी पते की सिखाई हैं।
एक जनता के मूड को जानने का दावा मत करो, कब बदल जाए पता नहीं चलता। फिर रिस्क क्यों लेना भाई। वैसे भी ये बड़े जिगर वालों का काम है। हां, कुछ खालिस चीजें बची हैं, जिन पर भरोसा किया जा सकता है। इनमें टॉप पर है सट्टा और दूसरे नंबर पर ईवीएम (अपनी वोटिंग मशीन)।
दोनों कभी झूठ नहीं बोलते। दर्पण धोखा दे सकता है, लेकिन दोनों पर आप यकीन कर सकते हैं। इसलिए भी क्योंकि सट्टे पर करोड़ों लगाने वाले लाखों लोग यकीन करते हैं और ईवीएम सरकार बनाती और बदलती है। इन दोनों के सामने कोई टिक नहीं पाता। वे भी नहीं जो अपना भविष्य तक नहीं जानते, लेकिन देश के प्रधानमंत्री और अमेरिका का राष्ट्रपति कौन होगा इसके बारे में दो मीटर लंबे फैक्स अखबारों के दफ्तरों में भिजवाते हैं।
बात भरोसे पर चली थी। किस पर किया जाए? चुनाव के दौरान क्या कुछ नहीं कहा गया आपसे। जो लोग कभी का जीतना भूल चुके हैं, जिन्हें खुद की पार्टी पर ही भरोसा नहीं, हर बार पार्टी बदल डालते हैं, जिन्हें अपनों पर भरोसा नहीं, अपने धंधे पर भरोसा नहीं, वे शहर को भरोसा दिलाने चल निकले कि इस बार उनके अलावा जीत किसी और की हो ही नहीं सकती।
बस इसी तरह कॉलोनी और गांवों के कुछ लोगों बरगला लिया। भोले हैं न बेचारे। शहर के तेज तर्रार लोगों को देखिए। कोई नहीं आया इनके झांसे में। नेता जी के बंगले के अगल-बगल रहने वालों तक ने उन्हें वोट नहीं दी। बड़ा भरोसा था इन्हें। और तो और एक नई-नई नेतागिरी सीखे एक शख्स ने अपने यहां 300 लोगों की पेड फौज रख ली। सोचा कि ये लोग प्रचार तो करेंगे ही साथ ही चुनाव वाले दिन के लिए वोट भी बटोर कर ले आएंगे। जैसे नेता जी वैसे ही उनके कारिंदे।
जब तक माल मिलता गया तब तक दोनों का ही भरोसा बना रहा। आप पूछेंगे, नेता जी को माल कैसे मिला, लोग कहते हैं, ये तो माल लुटा रहे थे।
लुटाने वाले को भला कहां मिलता है? अरे साहब आपको पहले भी बताया था, जो दिखता है वैसा होता नहीं। कहते हैं, नेता जी तो नेता जी, इनके गॉड फादर को भी यह चुनाव बड़ा भारी रास आया है। शहर में बड़े लोगों का उपकार किया है गॉड फादर ने। पता नहीं कितने सेठ लोगों की कुंडलियां पड़ी हैं इनके पास। एक सेठ की कुंडली झाड़ो, लाखों बरसते हैं।
चंडीगढ़ के सेठ तो वैसे ही सेवा के लिए तैयार रहते हैं। उम्मीद थी कि गॉड फादर बड़ा जलवा दिखाएंगे। चुनाव में बार-बार यह बात कही भी जा रही थी, लेकिन जब ईबीएम ने नतीजे उगलने शुरू किए तो जो कुछ छिपा था सब बाहर आ गया। तीन सेक्टरों से एक सौ वोट भी नहीं। अब क्या करेंगे नेता जी?
-गप्पी सिंह
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर