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ओ माँ.....तेरे बारे में क्या कहूँ...मैं तो तेरा बच्चा हूँ....!!

माँ के बारे में मैं क्या कहूँ अब.........आँखे नम हो जाती हैं माँ की किसी भी बात पर........दरअसल माँ का कृत्य इतना अद्भुत होता है कि उसका पर्याय धरती पर ना कभी हुआ और ना कभी हो भी सकता है......आदमी की सीमितताओं के बीच भी माँ जिन कार्यों को अपने जीवन में अंजाम देती है....वह उसे एक अद्भुत व्यक्तित्व में परिणत कर देते हैं....माँ सृष्टि का ही एक व्यापक रूप है.... माँ प्रकृति का ही इक पर्याय है....माँ अपनी ससीमताओं के बावजूद भी एक असीम संरचना है....मगर सच तो यह है कि आप जब आप माँ के बारे में कुछ भी कहने बैठते हो तो आपके तमाम शब्द बेहद बौने लगने लगते हैं.....सृष्टि के आरम्भ से ही धरती पर विभिन्न तरह के जीवों की प्रजातियों में माँ नाम की इस संज्ञा और विशेषण ने अपनी संतान के लिए जो कुछ भी किया है... उसके सम्मुख अन्य कुछ भी तुच्छ है....और आदमी की जाति में तो माँ का योगदान अतुल्य है...........!!!
माँ के बारे में आप यह भी नहीं कह सकते कि उसने हमारे लिए कितना-कुछ सहा है....सच तो यह है कि हम तो यह भी नहीं जान सकते कि उसे इस "कितना-कुछ" सहने में भी कितना अनिर्वर्चनीय सुख.....कितना असीम आनंद प्राप्त होता है.....आप तनिक सोचिये प्रकृति की वह सरंचना कैसी अद्भुत चीज़ होगी.....जो अपनी संतान को पालने में आने वाली हर बाधा को अपनी सीढ़ी ही बना लेती है.....संतान के हर संकट को खुद झेल लेती है....संतान के हर दुखः में चट्टान की तरह सम्मुख खड़ी हो जाती है....और तो और इस रास्ते में आने वाले तमाम दुखः और तकलीफ भी उसके आनंद का अगाध स्रोत बन जाते हैं....जबकि आदमी की आदिम प्रवृति दुखों से पल्ला झाड़ने की होती है.....!!
दोस्तों....!! माँ की बाबत हम कुछ भी लिखें....बेहद-बेहद-बेहद कम होगा.....एक मादा,एक औरत के रूप में चाहे जैसी भी हो,माँ के रूप में तो वह अद्भुत ही साबित होती है(मैं अपवादों की बात नहीं कर रहा.....जो इस मामले में संभव हैं)............आदमी की जात को इस बात के लिए ऊपर वाले का सदा कृतज्ञ रहना चाहिए कि उसे हर घर में....हर परिवार में माँ के रूप में एक ऐसी सौगात मिली है....जिसका बदला वह जन्मों-जन्मों तक भी नहीं चुका सकता....!!
और बस इसी एक वजह से उसे समूची स्त्री जाति की अपार इज्ज़त करनी चाहिए... और जो खुन्नस उसके मन में स्त्री के प्रति किसी भी कारण से मौजूद है....तो उसे उन कारणों की ही पड़ताल करनी चाहिए....ताकि तमाम प्रेम-संबंधों और दैहिक-संसर्गों के बावजूद आदमी और औरत के बीच जो कुहासा है....वो छंट सके.....स्त्रीत्व के मूल्य स्थापित हो सकें.....आदमियत अपना गौरव पा सके....और स्त्री अपना खोया हुआ वजूद......!!

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...