आर्य समाज जैसे कुछ संगठनों ने हिन्दुत्व को आर्य धर्म कहा है और वे चाहते हैं कि हिन्दुओं को आर्य कहा जाय। वस्तुत: 'आर्य' शब्द किसी प्रजाति का द्योतक नहीं है। इसका अर्थ केवल श्रेष्ठ है और बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य की व्याख्या करते समय भी यही अर्थ ग्रहण किया गया है। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ उदात्त अथवा श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था। वस्तुत: प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रन्थों में हिन्दू नाम कहीं भी नहीं मिलता। यह माना जाता है कि परस्य (ईरान) देश के निवासी 'सिन्धु' नदी को 'हिन्दु' कहते थे क्योंकि वे 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। धीरे-धीरे वे सिन्धु पार के निवासियों को हिन्दू कहने लगे। भारत से बाहर 'हिन्दू' शब्द का उल्लेख 'अवेस्ता' में मिलता है। विनोबा जी के अनुसार हिन्दू का मुख्य लक्षण उसकी अहिंसा-प्रियता है
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
एक अन्य श्लोक में कहा गया है
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
ॐकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है, तथा हिंसा की जो निन्दा करता है, वह हिन्दू है।
चीनी यात्री हुएनसाग् के समय में हिन्दू शब्द प्रचलित था। यह माना जा सकता है कि हिन्दू' शब्द इन्दु' जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है से बना है। चीन में भी इन्दु' को इन्तु' कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष में चन्द्रमा को बहुत महत्त्व देते हैं। राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को 'इन्तु' या 'हिन्दु' कहने लगे। मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही 'हिन्दू' शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम मुसलमानों की देन नहीं है।
भारत भूमि में अनेक ऋषि, सन्त और द्रष्टा उत्पन्न हुए हैं। उनके द्वारा प्रकट किये गये विचार जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। कभी उनके विचार एक दूसरे के पूरक होते हैं और कभी परस्पर विरोधी। हिन्दुत्व एक उद्विकासी व्यवस्था है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता रही है। इसे समझने के लिए हम किसी एक ऋषि या द्रष्टा अथवा किसी एक पुस्तक पर निर्भर नहीं रह सकते। यहाँ विचारों, दृष्टिकोणों और मार्गों में विविधता है किन्तु नदियों की गति की तरह इनमें निरन्तरता है तथा समुद्र में मिलने की उत्कण्ठा की तरह आनन्द और मोक्ष का परम लक्ष्य है।
हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। हिन्दू समाज किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं हैं, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित या किसी एक पुस्तक में संकलित विचारों या मान्यताओं से बँधा हुआ नहीं है। वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-रिवाज को नहीं मानता। वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की परम्पराओं की संतुष्टि नहीं करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं । कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति है; यह मस्तिष्क की एक दशा है। हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है।
हिन्दुत्व की प्रशंसा और समर्थन
- हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि हिन्दू शब्द के साथ जितनी भी भावनाएं और पद्धतियाँ, ऐतिहासिक तथ्य, सामाजिक आचार-विचार तथा वैज्ञानिक व आध्यात्मिक अन्वेषण जुड़े हैं, वे सभी हिन्दुत्व में समाहित हैं।हिन्दुत्व शब्द केवल मात्र हिन्दू जाति के कोरे धार्मिक और आध्यात्मिक इतिहास को ही अभिव्यक्त नहीं करता। हिन्दू जाति के लोग विभिन्न मत मतान्तरों का अनुसरण करते हैं। इन मत मतान्तरों व पंथों को सामूहिक रूप से हिन्दूमत अथवा हिन्दूवाद नाम दिया जा सकता है । आज भ्रान्तिवश हिन्दुत्व व हिन्दूवाद को एक दूसरे के पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। यह चेष्टा हिन्दुत्व शब्द का बहुत ही संकीर्ण प्रयोग है ।
- हिन्दुत्ववादियों के अनुसार हिन्दुत्व किसी भी धर्म या उपासना पद्धति के ख़िलाफ़ नहीं है ।
- वो तो भारत में सुदृढ़ राष्ट्रवाद और नवजागरण लाना चाहता है । उसके लिये हिन्दू संस्कृति वापिस लाना ज़रूरी है ।
- अगर समृद्ध हिन्दू संस्कृति का संरक्षण न किया गया तो विश्व से ये धरोहरें मिट जायेंगी । आज भोगवादी पश्चिमी संस्कृति से हिन्दू संस्कृति को बचाने की ज़रूरत है ।
- हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म सर्वधर्म समभाव के सिद्धान्त में विश्मास रखता है । (ईसाई और मुसलमान ये नहीं मानते)
- हिन्दुत्व गाय जैसे मातासमान पशु का संरक्षण करता है ।
- ईसाई और इस्लाम धर्म हिन्दू धर्म को पाप और शैतानी धर्म मानता है । इस्लाम के अनुसार हिन्दू लोग क़ाफ़िर हैं ।
- मुसलमान हिन्दू बहुल देशों में रहाना ही नहीं चाहते । वो एक वृहत्-इस्लामी उम्मा में विश्वास रखते हैं और भारत को दारुल-हर्ब (विधर्मियों का राज्य) मानते हैं । वो भारत को इस्लामी राज्य बनाना चाहते हैं ।
- मुसलमान हिंसा से और ईसाई लालच देकर हिन्दुओं (ख़ास तौर पर अनपढ़ दलितों को) अपने धर्म में धर्मान्तरित करने में लगे रहते हैं ।
- इतिहास गवाह है कि मुसलमान आक्रान्ताओं ने मध्य-युगों में भारत में भारी मार-काट मचायी थी । उन्होंने हज़ारों मन्दिर तोड़े और लाखों हिन्दुओं का नरसंहार किया था । हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिये ।
- इस्लामी बहुमत पाकिस्तान (अखण्ड भारत का हिस्सा) भारत को कभी चैन से जीने नहीं देगा । आज सारी दुनिया को इस्लामी आतंकवाद से ख़तरा है । अगर आतंकवाद को न रोका गया तो पहले कश्मीर और फिर पूरा भारत पाकिस्तान के पास चला जायेगा ।
- कम्युनिस्ट इस देश के दुश्मन हैं । वो धर्म को अफ़ीम समझते हैं । उनके हिसाब से तो भारत एक राष्ट्र है ही नहीं, बल्कि कई राष्ट्रों की अजीब मिलावट है । रूस और चीन में सभी धर्मों पर भारी ज़ुल्मो-सितम ढहाने वाले अब भारत में इस्लाम के रक्षक होने का ढोंग करने के लिये प्रकट हुए हैं ।
- अयोध्या का राम मंदिर हिन्दुओं के लिये वैसा ही महत्त्व रखता है जैसे काबा शरीफ़ मुसलमानों के लिए या रोम और येरुशलम के चर्च ईसाइयों के लिये । फिर क्यों एक ऐसी बाबरी मस्जिद के पीछे मुसलमान पड़े हैं जहाँ नमाज़ तक नहीं पढ़ी जाती, और जो एक हिन्दू मन्दिर को तोड़ कर बनायी गयी है ?
- भारत में मुसल्मन संगठित हैं--एक समुदाय के रूप में । हिन्दू जात-पात, साम्प्रदाय, भाषा आदि में बँटे हैं । हिन्दुत्व सभी हिन्दुओं को संगठित करता है ।
- आधुनिक भारत में नकली धर्मनिर्पेक्षता चल रही है । बाकी लोकतान्त्रिक देशों की तरह यहाँ सभी धर्मावलम्बियों के लिये समानाचार संहिता नहीं है । यहाँ मुसलमानों के अपने व्यक्तिगत कानून हैं जिसमें औरत के दोयम दर्ज़े, ज़बानी तलाक़, चार-चार शादियों जैसी घटिया चीज़ों जो कानूनी मान्यता दी गयी है ।
हिन्दुत्व की निन्दा
हिन्दुत्व की निन्दा अधिकतर भारतीय कम्युनिस्ट और वामपंथी करते हैं ।
- हिन्दुत्ववादियों के कहने के मुताबिक मुसलमान और ईसाई "बाहरी व्यक्ति" हैं और हिन्दुत्व में कभी समाहित नहीं हो सकते ।
- हिन्दुत्ववादी सभी मुसलमानों को ग़द्दार समझते हैं । वो चाहते हैं कि मुसलमान भारत छोड़ कर पाकिस्तान चले जायें । कुछेक मुसलमानों की ग़लतियों को अतिव्यापक बनाकर वो सभी मुसलमानों को ग़द्दार करार देते हैं । भारतीय संस्कृति (और हिन्दी भाषा) से ये लोग मुस्लिम और ईसाई हिस्से फ़ेक कर उसे "शुद्ध" करना चाहते हैं ।
- हिन्दुत्ववादी मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसात्मक दंगे-फ़साद करते और कराते हैं जिसमें हज़ारों मुसलमान मारे जाते हैं ।
- हिन्दुत्व भारत की धर्मनिर्पेक्षता के ख़िलाफ है । और वो ब्राह्मण सर्वोच्चता और दलित उत्पीड़न पर आधारित है ।
- हिन्दुत्ववादियों को एक अजीब और बेबुनियाद "विदेशी भीति" है--यानि कि भारत से बाहर की हर विदेशी चीज़ से नफ़रत और डर । क्योंकि मुसलमानों और ईसाइयों का उद्गम स्थान मध्य-पूर्व है, इसलिये हिन्दुत्ववादी उनसे नफ़रत करते हैं ।
- हिन्दुत्ववादियों के मुताबिक नेपाल, बाली, सुरिनाम, मॉरिशस, वगैरह के अभारतीय हिन्दुओं की क्या हस्ती है, अगर वो हिन्दुत्व को भरतीयता के साथ की जोड़ते हैं ?
- क्या हिन्दुत्ववादियों के मुताबिक कोई अभारतीय गैर-हिन्दू हिन्दू बन सकता है ? अगर नहीं, तो क्या ये हिन्दू धर्म की संकीर्णता और असर्वलौकिकता नहीं सिद्ध करता ?
- हिन्दू धर्म का कोई भी अकेला चर्च या धर्मसंगठन नहीं है । तो फ़िर ये हिन्दुत्ववादी होते कौन हैं हिन्दुओं की झण्डाबरदारी करने वाले ?
- हिन्दू धर्म के अनेक देवी-देवताओं से दूर हिन्दुत्ववादी विचारधारा राम" राम के ईद-गिर्द ही घूमती रहती है । राममन्दिर के लिये वो मरने मारने को तैयार हैं ।
- हिन्दुत्ववादी हिन्दू धर्म को हमेशा दूसरों से ज़बरदस्ती अलग दिखाने की कोशिश करते हैं । वो इस बात पर कुछ ज़्यादा ही गर्व करते हैं कि हिन्दू धर्म एक बहुदेवतावादी धर्म है, क्योंकि ये उनको एकेश्वरवादी इब्राहिमी धर्मों से अलग करता है । इस बात को वो लोग शायद भूल ही गये हैं कि हिन्दू धर्म भी मूलतः एकेश्वरवादी धर्म ही है । हिन्दू भी एक ही परमेश्वर की सत्ता मानते हैं, पर उसे कई देवी-देवताओं के रूप में भक्ति के लिये पूजते हैं । हिन्दुत्ववादी परमेश्वर और देवता में फ़र्क नहीं कर पाते । और तो और, कई हिन्दुत्ववादी स्वयं नास्तिक होते हैं, और तब भी हिन्दुत्व का ढोल पीटते हैं ! इस वजह से कई धर्मभीरु हिन्दू ख़ुद हिन्दुत्ववादियों से पल्ला झाड़ लेते हैं ।
- हिन्दुत्ववादी हिट्लर के प्रशंसक हैं और फ़ासीवादी हैं । भगवद्गीता और हिन्दू धर्मग्रन्थों का उल्लेख करके ये लोग हिन्सा और मारकाट को सही ठहराते हैं ।
- कुछ हिन्दुत्ववादियों के दावे :
- आर्य लोग भारत मध्य एशिया से नहीं आये थे । उनका मूलस्थान भारत ही है, और यहीं से वो यूरोप को प्रवास किये थे । (वैसे इस गर्म विषय पर शोध चल रहा है)
- (आर्य) और एक ही है । संस्कृत ही सभी द्वविड़ भाषाओं की ही जननी है । संस्कृत दुनिया की सभी भाषाओं की जननी है । (ये बात भाषाविद बिलकुल नहीं मानते । हिन्द-यूरोपीय और द्रविड़ भाषा-परिवारों में बहुत ज़्यादा अन्तर है । और हिन्द-आर्य भाषा-परिवार की भाषाओं का मूल आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा है । बेशक वो संस्कृत के काफ़ी करीब ज़रूर थी । अरबी, चीनी, जापानी जैसी भाषाओं का तो संस्कृत से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है ।)
- हिन्दुत्ववादी दुनिया के सारे बहुदेवतावादी और मूर्तिपूजक धर्मों को "हिन्दू धर्म" मानते हैं जिनपर इस्लाम और ईसाई धर्म ज़बरन हावी हो गया । उनके हिसाब से प्राचीन धर्म, प्राचीन , प्राचीन अरबी धर्म, इत्यादि सब "हिन्दू धर्म" थे, सिर्फ़ इसलिये क्योंकि उनके कई देवी-देवता थे और वो मूर्तियों की पूजा करते थे । उनके हिसाब से मक्का के काबा का काला पत्थर "शिवलिंग" है । उनके मुताबिक मुहम्मद के पहले के अरबों के 360 देवी-देवता (जिनमें अल्लाह, उनकी तीन पौराणिक पुत्रियाँ अल्लत, मनात और अल-उज़्ज़ा, अशेराह, वगैरह शामिल हैं) "हिन्दू देवी-देवता" थे ।
- ताज माहल एक हिन्दू शैव मंदिर तेजो महालय था । उसके गुम्बज़ और मीनारें (जो कि इस्लामी कला हैं) हिन्दू मंदिर की कला के उदाहरण हैं ।
बेहद थका और सत्यविहीन और अतार्किक शब्दों का प्रयोग करके आपने ये लेख लिखा है| इसके अलावा में केवल चन्द प्रश्न पूछ कर ही आपके इस पोस्ट की धज्जियाँ उड़ा सकता हूँ| आपके इस लेख में हिन्दू धर्म के बारे में सद्भावना पूर्वक अपनी बात कहने के बजाये इस्लाम और ईसाई धर्म की धुर बुराई करते हुए पता नहीं क्या सिद्ध करना चाहते हैं|
ReplyDeleteतथ्यपरक लेख...लेख में वर्णित कथ्य से सहमत और असहमत दोनों पक्षों के पास तर्क हैं उन्हें सुने...समझें..सहिष्णुता के साथ...धज्जियाँ उड़ने की आक्रामक शेली ही गलत है. अपनी-अपनी बात रखने का सबको हक है...आपके तर्कों से भी लोग असहमत हो सकते हैं. यह उनका अधिकार है...दूसरों की बात को पूरी तरह सामना आने का मौका न देना लोकतंत्र के लिए घातक है...
ReplyDeleteआचार्य जी का कहना शत प्रतिशत सही है, क्यूंकि सभी को अपनी बात कहने का हक है, चाहे वो कोई हो और यह भी आचार्य जी ने ठीक ही कहा कि हो सकता है कि आपकी बात से लोग असहमत भी हों ! बेनामी बन्धु से अनुरोध है वे सामने आकार अपनी बात कहें यूँ छुप छुप कर कहने से क्या फायेदा ! हिन्दू धर्म और इस्लाम में बहुत साडी समानताएं हैं, जहाँ एक तरफ समानताये हैं वही विभिन्नताएं भी!!!
ReplyDeleteआपने अपनी बात कही भी तो इस तरह से की आप हिन्दुओं से इर्षा और जलन की भावना रखने वाले दिखाई पढ़ रहे है !
ReplyDeleteआपकी बात और आपके विचारों में मुझे हिन्दू धर्म से samaanta कम ही najar aayi इसे हम doosre धर्म की burai करने के लिए likhi गयी post मान सकते है
प्रभु अपने जो लेख को बिन्दुवार बांटा है, उसमे कई जगह लोच है... तर्कों पर आधारित बहस करने लायक बात उठाई है .. लेकिन कुछ जगह उलझन ही उलझन है... खैर एक सराहनीय प्रयास...
ReplyDeleteबैष्णव जन तो तेने कहिये
ReplyDeleteजो पीर पराई जाने रे,
पर दुक्खे उपकार करे
अरू मन अभिमान न होई रे
हिन्द महासागर--को सन्स्क्रत में--इन्दु-सरोवर कहाजाता है...(आधुनिक व पौराणिक तथ्यों से चन्द्रमा प्रथ्वी का पुत्र है अर्थात हिन्द महासागर के स्थान से ही टूटकर चन्द्रमा अस्तित्व में आया...अत इन्दु-सरोवर..)
ReplyDeleteब्रहस्पति आगम का श्लोकहै,. ....
"हिमालय समारभ्य यवाद इंदु सरोवं।
तं देव निर्वितं देशम हिंदुस्थानम प्रच्क्षेत ।
---- हिमालय से इन्दु सरोवर तक के क्षेत्र के बासी "हिन्दू"----हिमालय का हि+ न्दु(इन्दु सरोवर का) = हिन्दू....