यह मेरी आज़िजाना है तहरीक दोस्तों
जाओ न खुराफात के नज़दीक दोस्तों
थोडी सी गैरत है तो मांगो न तुम दहेज़
लेना न जोड़े घोडे की तुम भीक दोस्तों
तुम ख़ुद कम के ऐश करो , मर्द हो अगर
वरना करेगी बीवी भी तजहीक दोस्तों
फर्सूदा रस्मों रवाजो को छोड़ दो
अपने माशरे को करो , ठीक दोस्तों
उन बिन बियाही बहनों को देखो ज़रा जिनकी
है ज़िन्दगी अजीरण वो तरीक दोस्तों
इश्वर और उसके उसके एह्काम पर चलो
यह मेरी आजिजाना है तहरीक दोस्तों
जाओ न खुराफात के नज़दीक दोस्तों
थोडी सी गैरत है तो मांगो न तुम दहेज़
लेना न जोड़े घोडे की तुम भीक दोस्तों
तुम ख़ुद कम के ऐश करो , मर्द हो अगर
वरना करेगी बीवी भी तजहीक दोस्तों
फर्सूदा रस्मों रवाजो को छोड़ दो
अपने माशरे को करो , ठीक दोस्तों
उन बिन बियाही बहनों को देखो ज़रा जिनकी
है ज़िन्दगी अजीरण वो तरीक दोस्तों
इश्वर और उसके उसके एह्काम पर चलो
यह मेरी आजिजाना है तहरीक दोस्तों
हुज़ूर आदाब !
ReplyDeleteबहुत ही नायाब पैगाम दिया है आपने अपनी इस
खूबसूरत ग़ज़ल के हवाले से ..
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ हकीक़त से मुलाक़ात ...
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं ...
और ये आपकी खिदमत में
"जिद्दत के साथ-साथ रहो कोई ग़म नहीं
रस्मों की भी निभाते चलो लीक दोस्तों.."
---मुफलिस---