अक्सर कुछ लोगों के मन में यह आता ही होगा कि जानवरों की हत्या एक क्रूर और निर्दयतापूर्ण कार्य है तो क्यूँ लोग मांस खाते हैं| जहाँ तक मेरा सवाल है मैं भी एक मांसाहारी हूँ और मुझसे मेरे परिवार के लोग और जानने वाले (जो शाकाहारी हैं) अक्सर कहते हैं कि आप माँस खाते हो और बेज़ुबान जानवरों पर अत्याचार करके जानवरों के अधिकारों का हनन करते हो | मैं जिला पीलीभीत का रहने वाला हूँ वर्तमान में लखनऊ में रहता हूँ | पीलीभीत जिला तो एक जानवरों की प्रेमिका का जिला भी है जिसे जानवरों से बहुत प्यार है | मैं उसी जिले में पला-बढा, १९९८ में मैं लखनऊ आ गया लगभग दस साल बाद पिछले महीने ही मैं २६ जनवरी की छुट्टियों पर गया तो शारदा नदी ने गाँव तो गाँव जंगल तक कटान कर दिया है और जानवरों की प्रेमिका के जिले में किसानों की इतनी दुर्दशा तो शायेद आदिवासी इलाके में भी नहीं होगी| वहां किसानों की हालत जानवरों से बदतर हो गई थी | जानवरों की तो बात ही क्या| अल्लाह का शुक्र था मेरा गाँव अभी कटान से बचा हुआ था | लेकिन मुझे वहां का मंज़र देख कर वाकई रोना सा आगया |
ख़ैर ! बात चल रही थी - मांसाहार की.....
शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन का रूप ले लिया है, बहुत से लोग तो इसको जानवरों के अधिकार से जोड़ते हैं| निसंदेह दुनिया में माँसाहारों की एक बड़ी संख्या है और अन्य लोग मांसाहार को जानवरों के अधिकार (जानवराधिकार) का हनन मानते हैं|
मेरा मानना है कि इंसानियत का यह तकाज़ा है कि इन्सान सभी जीव और प्राणी से दया का भावः रखे| साथ ही मेरा मानना यह भी है कि ईश्वर ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे बड़े हर प्रकार के जीव-जंतुओं को हमारे लाभ के लिए पैदा किया गया है | अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम ईश्वर की दी हुई अमानत और नेमत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करते है|
आइये इस पहलू पर और इसके तथ्यों पर और बताऊँ...
1- माँस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर है
माँस उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है| इसमें आठों अमीनों असिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति खाने से पूरी हो सकती है| गोश्त यानि माँस में लोहा, विटामिन बी वन और नियासिन भी पाए जाते हैं (पढ़े- कक्षा दस और बारह की पुस्तकें)
2- इन्सान के दांतों में दो प्रकार की क्षमता है
अगर आप घांस-फूस खाने वाले जानवर जैसे बकरी, भेड़ और गाय वगैरह के तो आप उन सभी में समानता पाएंगे | इन सभी जानवरों के चपटे दंत होते हैं यानि जो घांस-फूस खाने के लिए उपयुक्त होते हैं| यदि आप मांसाहारी जानवरों जैसे
शेर, चीता और बाघ आदि के दंत देखें तो उनमें नुकीले दंत भी पाएंगे जो कि माँस खाने में मदद करते हैं| यदि आप अपने अर्थात इन्सान के दांतों का अध्ययन करें तो आप पाएंगे हमारे दांत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं| इस प्रकार वे शाक और माँस दोनों खाने में सक्षम हैं | यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दांत क्यूँ देता | यह इस बात का सबूत है कि उसने हमें माँस और सब्जी दोनों खाने की इजाज़त दी है|
3- इन्सान माँस और सब्जियां दोनों पचा सकता है
शाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल केवल सब्जियां ही पचा सकते है और मांसाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल माँस पचाने में सक्षम है लेकिन इन्सान का पाचन तंत्र दोनों को पचा सकता है | अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमको केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे हमें ऐसा पाचनतंत्र क्यूँ देता जो माँस और सब्जी दोनों पचा सकता है|
4- एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता है
एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है| मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं|
5- पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की अनुमति देता है
पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की इजाज़त देता है| कुरानी आयतें इस बात की सबूत है- "ऐ ईमान वालों, प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो| तुम्हारे लिए चौपाये जानवर जायज़ है, केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है|" (कुरआन 5:1)
"रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया जिसमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी और अन्य कितने लाभ | उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो |" (कुरआन 16:5)
"और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक उदहारण हैं| उनके शरीर के अन्दर हम तुम्हारे पीने के लिए दूध पैदा करते हैं और इसके अलावा उनमें तुम्हारे लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका माँस तुम प्रयोग करते हो" (कुरआन 23:21)
6- हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की अनुमति देतें है
बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं| उनका विचार है कि माँस सेवन धर्म विरुद्ध है| लेकिन सच ये है कि हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की इजाज़त देतें है| ग्रन्थों में उनका ज़िक्र है जो माँस खाते थे|
(A) हिन्दू क़ानून पुस्तक मनु स्मृति के अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि -
"वे जो उनका माँस खाते है जो खाने योग्य हैं, अगरचे वो कोई अपराध नहीं करते| अगरचे वे ऐसा रोज़ करते हो क्यूंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है|"
(B) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5 सूत्र 31 में आता है-
""माँस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है|"
(C) आगे अध्याय 5 सूत्र 39 और 40 में कहा गया है कि -
"स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अतः बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं"
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठर और पितामह के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौन से भोजन पूर्वजों को शांति पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिए?
प्रसंग इस प्रकार है -"युधिष्ठिर ने कहा, "हे महाबली!मुझे बताईये कि कौन सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेट की जाये तो उनको शांति मिले? कौन सा हव्य सदैव रहेगा ? और वह क्या जिसको यदि सदैव पेश किया जाये तो अनंत हो जाये?" भीष्म ने कहा, "बात सुनो, हे युधिष्ठिर कि वे कौन सी हवी है जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित है और कौन से फल है जो प्रत्येक से जुडें हैं| और श्राद्ध के समय शीशम, बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाये तो पूर्वजो को एक माह तक शांति मिलती है| यदि मछली भेंट की जाये तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती है| भेंड का माँस तीन माह तक उन्हें शांति देता है| खरगोश का माँस चार माह तक, बकरी का माँस पांच माह और सूअर का माँस छह माह तक, पक्षियों का माँस सात माह तक, पृष्ठा नामक हिरन से वे आठ माह तक, रुरु नामक हिरन के माँस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं| "GAWAYA" के माँस से दस माह तक, भैस के माँस से ग्यारह माह तक और गौ माँस से पूरे एक वर्ष तक| प्यास यदि उन्हें घी में मिला कर दान किया जाये यह पूर्वजों के लिए गौ माँस की तरह होता है| बधरिनासा (एक बड़ा बैल) के माँस से बारह वर्ष तक और गैंडे का माँस यदि चंद्रमा के अनुसार उनको मृत्यु वर्ष पर भेंट किया जाये तो यह उन्हें सदैव सुख शांति में रखता है| क्लासका नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियां और लाल बकरी का माँस भेंट किया जाये तो वह भी अनंत सुखदायी होता है| अतः यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत काल तक सुख-शांति देना चाहते हो तो तुम्हें लाल बकरी का माँस भेंट करना चाहिए|"
7- हिन्दू मत अन्य धर्मों से प्रभावित
हालाँकि हिन्दू धर्म ग्रन्थ अपने मानने वालों को मांसाहार की अनुमति देते हैं, फिर भी बहुत से हिन्दुओं ने शाकाहारी व्यवस्था अपना ली, क्यूंकि वे जैन जैसे धर्मों से प्रभावित हो गए थे|
कुछ धर्मों ने शुद्ध शाकाहार अपना लिया क्यूंकि वे पूर्णरूप से जीव-हत्या से विरुद्ध है| अतीत में लोगों का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता| आज यह विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता है| अतः जीव हत्या के सम्बन्ध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता|
9- पौधों को भी पीड़ा होती है-
वे आगे तर्क देते हैं कि पौधों को पीड़ा महसूस नहीं होती, अतः पौधों को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है| आज विज्ञानं कहता है कि पौधे भी पीड़ा महसूस करते हैं लेकिन उनकी चीख इंसानों के द्वारा नहीं सुनी जा सकती | इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज़ सुनने की अक्षमता जो श्रुत सीमा में नहीं आते अर्थात 20 हर्ट्ज़ से 20,000 हर्ट्ज़ तक इस सीमा के नीचे या ऊपर पड़ने वाली किसी भी वस्तु की आवाज़ मनुष्य नहीं सुन सकता है| एक कुत्ते में 40,000 हर्ट्ज़ तक सुनने की क्षमता है| इसी प्रकार खामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्ट्ज़ से कम होती है| इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं| एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता है और उसके पास पहुँच जाता है| अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का अविष्कार किया जो पौधे की चीख को ऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है| जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को तुंरत ज्ञान हो जाता था| वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते है कि पौधे भी पीड़ा, दुःख-सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं|
10- दो इन्द्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहीं !!!
एक बार एक शाकाहारी ने तर्क दिया कि पौधों में दो अथवा तीन इन्द्रियाँ होती है जबकि जानवरों में पॉँच होती हैं| अतः पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मुक़ाबले छोटा अपराध है| कल्पना करें कि अगर आप का भाई पैदैशी गूंगा और बहरा है, दुसरे मनुष्य के मुक़ाबले उनमें दो इन्द्रियाँ कम हैं| वह जवान होता है और कोई उसकी हत्या कर देता है तो क्या आप न्यायधीश से कहेंगे कि वह हत्या करने वाले (दोषी) को कम दंड दें क्यूंकि आपके भाई की दो इन्द्रियाँ कम हैं| वास्तव में आप ऐसा नहीं कहेंगे | वास्तव में आपको यह कहना चाहिए उस अपराधी ने एक निर्दोष की हत्या की है और न्यायधीश को उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए|
पवित्र कुरआन में कहा गया है -
"ऐ लोगों, खाओ जो पृथ्वी पर है लेकिन पवित्र और जायज़| (कुरआन 2:168)
सलीम जी सच बहुत ही अच्छा लिखा है आपसे एक आग्रह है ही आप किसी के लिए जब commemts के अन्दर कुछ कहते है जैसे की मैंने देखा है आप बहुत बड़ा कमेंट्स लिखते है तो आप उसे कमेंट्स के अन्दर न लिखकर उसकी पोस्ट प्रकाशित करिए इससे आपकी बात जायदा लोगों तक पहुँचेगी क्योंकि कमेंट्स पर कम लोगों का ही ध्यान जाता है
ReplyDeleteशुक्रिया !
अच्छा लिखा है आपने बहुत खूब
ReplyDeleteयहाँ-वहां की सारी बातें छोडिये और अपनी उंगली में एक आलपिन गहरे तक घुसा कर देखिये की आपको कितना दर्द होता है. लोग खाने में एक बाल या एक चींटी गिर जाने पर खाना फेंक देते हैं और वही लोग एक बेजुबान जानवर का मांस, उसका खून और उसकी हड्डियों को मजे से चट करके खाते हैं. यदि शाकाहारी भोजन में इतनी कमियां होतीं तो दुनिया के करोडों शाकाहारी लोग भरपूर ज़िन्दगी नहीं जी पाते. धार्मिक ग्रंथों में लिखी बातें बहुत पहले ही बकवास साबित हो चुकी हैं इसलिए अपनी बातों को बल देने के लिए उनका सहारा न लें. मांसाहारी भोजन में कुछ प्रोटीन और तत्व अधिक हो सकते हैं पर वह शाकाहारी भोजन की गुणवत्ता का मुकाबला नहीं कर सकता. यह न भूलें की आपके भोजन का ७५% भाग शाकाहारी होता है. कोई भी आदमी चिकन और मटन रोटी और चावल के बगैर नहीं खाता. पेड़ पौधों में मन और भावनाएं होने की बात मैं भी मानता हूँ, लेकिन क्या आपने कभी उस मुर्गी या बकरे की तड़प देखी है जिसे कसाई काटने के लिए पकडे होता है? एक आदमी कोई गाली दे दे तो लोग मरने-मारने पर तैयार हो जाते हैं, वही आदमी दो इंच की जीभ के लपलपाने पर हंसते-खेलते प्राणी को मज़े से ठूंस जाता है.
ReplyDeleteबहुत सारी जानकारी और अपनी बात की पुष्टि के लिए तर्क, बहुत अच्छा लेख है | निशांत मिश्रा जी की टिपण्णी बहुत सटीक है, मैं सहमत हूँ इस बात से, और शायद सभी मांसाहारी को थोड़ा रहम आ सके ये पढ़ कर | अपनी बातो की पुष्टि के लिए धर्म का सहारा लेना तो हर गलत चीज़ को जायज ठहराने का एक प्रचलन है | बेजुबानों की पीडा समझे |
ReplyDeleteजेन्नी शबनम जी आपने शायद मेरा लेख पढ़ा नहीं ज़रा गौर से पढिये प्लीज़
ReplyDeleteaai logo kho Jo Bhi Prithvi Par hai Khud ko hi pavitra karka kha Jaoo Na Khud ko Kyo Nahi Khata ho Bhai
ReplyDeleteTIME PASS
ReplyDeleteARE SALIM JI, JAB KURAN NE PERMISSION DI HAI KHANE KI TO PHIR BEJUBAN JANWARO KO CHORKAR APNE GHARWALO KO KHAWO NA,APNE BIWI BACHHO KO KHAWO TAKI KAMSE KAM IS DHARTI SE HATYARE AUR UNKA SATH DENE WALE TO KAM HO,JAB TUMARA ALLAH BEJUBAN JANWARO KA KALYAN NAHI KAR SAKTA TO PHIR TUM LAGO KA KYA KHAK KAREHA, KHOON BAHANE KA ITNA HI SHOK HAI TO PHIR APNA AUR APNE GHARWALO KA BAHA AUR APNI KAUM KA BAHA, JO ALLAH TUMKO 2 TIME KI ROTI NAHI NASEEB KARVA SAKTA VO KYA DEGA TUMKO AUR , AISA HI TUMARA ALLAH AUR AESE HI USKO MANANE WALE , SAB KE SAB KHOONI AUR DARINDE
ReplyDelete