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गोपिकांत महतो. जी की सराहनीय कविता

आज से हम सराहनीय ९ कविताओं को प्रकाशित करने की शुरुआत कर रहे है इन कविताओं को किसी भी प्रकार की श्रेणी नहीं दी गयी है हमें जिस कविता को पहले प्रकाशित करने में सुबिधा हो रही है हम पहले उन्हें ही प्रकाशित कर रहे है !इसी क्रम की शुरुआत हम कर रहे है गोपिकांत महतो जी की कविता ''एकता.....ये दीप मेरे'' से गोपिकांत जी आकिर्टेक्ट है और लोग इन्हे समाज सेवक ही हैसियत से भी जानते है ! यह रांची झारखण्ड से बास्ता रखते है !तो यह रही इनकी कविता !

एकता.....ये दीप मेरे।

ये दीप तू जलता रहना
दिग्दर्सन करता रहना
पथ को उजजवल करने वाला
तू उन्ही जलता रहना.......हिन्दुस्तान
की उच्छ्वास को.
रोशन कर दो अंचल को
अपने लोउ को प्रजवलित कर लो
तृप्त कर दो हमारी प्यास को........
हवा ,आधी और झोका की
कठिनाई तो आती रहेगी,
पर तू होना मत डगमग
क्यूंकि मैं साथ हूँ सजग.
कितना मुस्किले सहा है हमने
लोउ की गरिमा को बनाने के लिए.
सिर्फ याद करते है राष्टीय छुट्टी में
साल भर है किसी कोने में.....
तुम्हे प्रजव्लित करने का
अनावाषा ही अवाषा हुआ,
ये मेरे जिंदगी का कठिन अनुभव का एह्साह हुआ.
तेरी लोउ ने मुझे राह दिखा दिया
तेरी लोउ ने मुझे सिखा दिया,
दीप की तरह जलते रहो
ऐसा एक अभिलाष दिया.
"मैं" एक दीप बनूँगा
तेरी बाती का जान बनूंगा
तुम साथ चलने का वादा कर
मैं चिंगारी से मसाल बनूँगा।

आगे पढ़ें के आगे यहाँ

Comments

  1. बहुत अच्छी रचना
    बधाई हो!!
    आगे भी आपसे इसी प्रकार के सहयोग की आशा!!

    ReplyDelete
  2. बधाई हो अच्छी रचना के लिए !!

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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