हवाओ के बीच प्रेम पर्व की आहटे आना शुरू हो गई है। शहरों में तो इसका सीधा सा मतलब यही होता है कि पार्टनर बदलने का वक्त आ गया है। अब आपकी बेक सीट पर मधु बैठी पुरानी लगने लगी है, उसे बदल कर प्राची को गर्लफ्रेंड बनाने के जतन किए जा रहे है। कमोबेश कुछ ऐसा मधु भी सोच रही होती है कि प्रवीणअब पुराना हो चला, क्यो न जिग्नेश को लिफ्ट दी जाए। मेरे शहर में अब प्रेम नही उसका अभिनय किया जाता है। वो जो संत प्यार के नाम कुर्बान हो गया, अगर अब आकर देखे तो दुःख में ही उसके प्राण छुट जायेंगे। वेलेंतैने डे पर हाथो में लाल गुलाब और भावनाए पीछे की जेब में दबी होती है। शायरों के अशार उधार लेकर दिल की बाजी जीतने की होड़ होती है। कुछ कथित मर्दानों के लिए प्यार देह के भूगोल नापने से आगे बढ़ ही नही पाता, ऐसे ही अर्थहीन आसक्त किनारों से टकरा कर प्यार के समंदर की लहरे अपना माथा कूटती रह जाती है। प्रेम तो एक झीनी सी चादर की तरह होता है। आज के युवा इस चादर पर देह पिपासा की कीले ठोक देते है। उसके बाद प्रेम उन्मुक्त पंछी की तरह आकाश में नही उड़ता बल्कि देह की धरती पर कीलो से दबा रह जाता है। अपने अर्थ को खो देता है
केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..
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--- संजय सेन सागर