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हवाओ के बीच प्रेम पर्व की आहटे आना शुरू हो गई है। शहरों में तो इसका सीधा सा मतलब यही होता है कि पार्टनर बदलने का वक्त आ गया है। अब आपकी बेक सीट पर मधु बैठी पुरानी लगने लगी है, उसे बदल कर प्राची को गर्लफ्रेंड बनाने के जतन किए जा रहे है। कमोबेश कुछ ऐसा मधु भी सोच रही होती है कि प्रवीणअब पुराना हो चला, क्यो न जिग्नेश को लिफ्ट दी जाए। मेरे शहर में अब प्रेम नही उसका अभिनय किया जाता है। वो जो संत प्यार के नाम कुर्बान हो गया, अगर अब आकर देखे तो दुःख में ही उसके प्राण छुट जायेंगे। वेलेंतैने डे पर हाथो में लाल गुलाब और भावनाए पीछे की जेब में दबी होती है। शायरों के अशार उधार लेकर दिल की बाजी जीतने की होड़ होती है। कुछ कथित मर्दानों के लिए प्यार देह के भूगोल नापने से आगे बढ़ ही नही पाता, ऐसे ही अर्थहीन आसक्त किनारों से टकरा कर प्यार के समंदर की लहरे अपना माथा कूटती रह जाती है। प्रेम तो एक झीनी सी चादर की तरह होता है। आज के युवा इस चादर पर देह पिपासा की कीले ठोक देते है। उसके बाद प्रेम उन्मुक्त पंछी की तरह आकाश में नही उड़ता बल्कि देह की धरती पर कीलो से दबा रह जाता है। अपने अर्थ को खो देता है

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डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा