चार चाँद लगे उस लेखक के लेखनी को। जिसने चकोर बन कर ढूढा मेरी निशानी। हर साजो से सजा कर समेटा अपनी बाहों में। मेरी सूरत को गढ़ के लिखा है क्या कहानी॥ उस निशानी को देख लिया । जिसे आप तक मैंने देखा नही॥ आती है रचना रचनी पल भर में लिख दिया सही॥ हर अंग की बाखूबी निहारा अलंकृत कर दी भेष भूषा। आँखों में सिर्फ़ मैकोई नही था दूजा॥ अब मै भी करनी लगी हूँ उसकी पूजा॥
केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..
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--- संजय सेन सागर