Skip to main content

बाबरी और राव का अंतिम सच

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

जस्टिस लिब्रहान ने जिन एक हजार पन्नों पर अपनी रपट लिखी है, वे बर्बाद हो गए। उन्हीं एक हजार पन्नों पर यदि छोटे बच्चों को क ख ग पढ़ाया जाता तो उनका कुछ बेहतर इस्तेमाल होता। यह कैसी रपट है कि बाबरी मस्जिद तोड़नेवाले एक भी कारसेवक पर वह उंगली नहीं रख सकी। वह उस साजिष का पर्दाफाष भी नहीं कर सकी, जिसके तहत मस्जिद गिराई गई लेकिन इस रपट के बहाने देष में जबर्दस्त राजनीतिक लीपा-पोती चल रही है। स्वयं लिब्रहान ने श्री नरसिंह राव पर व्यंग्य-बाण कसे हैं।
इस लीपा-पोती का सबसे दुखद पहलू यह है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। कोई कह रहा है कि 6 दिसंबर 1992 को वे दिन भर सोते रहे। कोई कह रहा है कि राव और संघ की मिलीभगत थी और मुझे उध्दृत करके यह भी कहा जा रहा है कि राव साहब ने मुझे कहा कि ''चलो अच्छा हुआ, मस्जिद टूटी, पिंड कटा।'' ये तीनों बातें बिल्कुल निराधार हैं। 6 दिसंबर 1992 को रविवार था। उसी दिन मस्जिद टूटी थी। उस दिन सुबह साढ़े आठ बजे से रात साढ़े ग्यारह बजे के बीच राव साहब से मेरी कम से कम छह-सात बार बात हुई है। रविवार होने के बावजूद मैं सुबह ठीक आठ बजे अपने दफ्तर (पी.टी.आई.) पहुंच गया था। साढ़े आठ बजे के आस-पास उनसे रोजमर्रा की तरह सामान्य बातचीत हुई। सवा दस बजे के करीब मैंने उन्हें बताया कि मस्जिद के पहले डोम पर लोग चढ़ गए हैं। हम दोनों की बातचीत के बीच आईबी प्रमुख वैद्य ने उन्हें ''रेक्स'' (लाल फोन) पर इसकी पुष्टि की ! राव साहब ने मुझसे कहा कि ''यह तो भयंकर धोखा हुआ।'' ''इन लोगों'' ने आपसे और मुझसे जितने भी वायदे किए थे, सब भंग कर दिए। राव साहब के प्रतिनिधि के तौर पर मैं विहिप, संघ, भाजपा नेताओं, साधु-संतों और मुस्लिम नेताओं से मंदिर-मस्जिद विवाद पर लगभग साल भर से बातचीत चला रहा था। औपचारिक तौर पर यह बातचीत शरद पवार, सुबोधकांत सहाय, कुमारमंगलम और राजेष पायलट चलाते थे। राम-मंदिर आंदोलन के सभी नेताओं ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया था कि उन्हें कार सेवा करने दी जाए। राव साहब कार-सेवा की अनुमति देने के पक्ष में नहीं थे। बातचीत टूटनेवाली थी लेकिन विहिप नेताओं ने मेरे आग्रह पर कार-सेवा की तारीख तीन माह आगे बढ़ाई और छह दिसंबर की तिथि तय हुई। यह समझौता 24 जुलाई को हुआ। इसी बीच प्रधानमंत्री ने राम-मंदिर आंदोलन का समाधान निकालने के लिए क्या-क्या प्रयत्न नहीं किए। इन सबका उल्लेख यहां नहीं हो सकता। 3 दिसंबर को मुख्यमंत्री कल्याणसिंह ने मुझे फोन किया और लगभग एक घंटे बात की। सर संघचालक रज्जू भय्या, सुदर्षनजी, अषोक सिंघलजी, डालमियाजी, आडवाणीजी, अटलजी, विनय कटियार आदि से भी स्पष्ट बात हुई। समझौता यह हुआ कि ढांचे के पास कोई नहीं जाएगा। केवल चबूतरे पर कार-सेवा होगी। कोई तोड़-फोड़ या ंहिंसा नहीं होगी। ऐसा ही आष्वासन उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय एकात्मता समिति को भी दिया गया था। लेकिन मुझे काफी शक था, क्योंकि बेकाबू होती भीड़ के कई कड़ुए अनुभव मुझे अपने छात्र-काल में हो चुके थे। मैंने कुछ रक्षा-विषेषज्ञों से बात करके प्रधानमंत्री को सलाह दी थी कि वे रबर-बुलैटों का अग्रिम प्रबंध करें ताकि हिंसक कार सेवकों को घायल किए बिना घटना स्थल से भगाया जा सके। मैंने उनसे यह भी कहा था कि छह दिसंबर के दिन मस्जिद को चारों तरफ से टैंकों से घिरवा दिया जाए।


ज्यों-ज्यों मस्जिद के दूसरे डोमों के गिरने की खबर आती गई, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री शंकरराव चव्हाण, अन्य वरिष्ठ अफसर और मैं कई विकल्पों पर विचार करते रहे। फैजाबाद स्थित पुलिस बल को अयोध्या दौड़ाने, कल्याणसिंह को बर्खास्त करने, ढांचे को बचाने, कार-सेवकों को विसर्जित करने आदि का कोई भी निर्णय लागू नहीं हो सका, क्योंकि हर निर्णय में कानूनी अड़चनें थीं और उससे भी ज्यादा आषंका यह थी कि यदि घटना-स्थल पर रक्तपात हो गया तो उसकी आग सारे देष में फैल जाएगी। कोढ़ में खाज क्यों पैदा करना ? मैं स्वयं उस समय तत्काल कठोर कार्रवाई के पक्ष में था लेकिन अब 17 साल बाद सोचता हूं तो लगता है कि राव साहब ने असाधारण धैर्य का परिचय देकर ठीक किया। लगभग चार बजे राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी ने मुझसे फोन पर पूछा कि ''क्या करें, मुख्यमंत्री राजभवन के गेट पर खड़े हैं ?'' मैंने कहा, 'वही कीजिए, जो गृहमंत्री कहते हैं।'' इस बारे में प्रधानमंत्री से आधा-एक घंटा पहले मेरी बात हो चुकी थी। याद रहे, राव साहब अक्सर पौने तीन बजे लंच के बाद आधा घंटा विश्राम किया करते थे। उस दिन उन्होंने न तो भोजन किया और न ही विश्राम। दूसरे दिन उन्हें तेज बुखार हो गया और गला इतना खराब रहा कि वे फोन पर ठीक से बात भी नहीं कर पा रहे थे। उस रोज मैंने खुद रात को साढ़े ग्यारह बजे वित्त राज्यमंत्री श्री रामेष्वर ठाकुर के घर भोजन किया। उस दिन देष के अनेक प्रमुख नेताओं से दिन-भर फोन पर बात होती रही। पता नहीं क्यों, संघ और कांग्रेस के भी कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री के विरूध्द तलवारें खींच लीं। उन्हें बदनाम करने और अपदस्थ करने के लिए क्या-क्या षडयंत्र नहीं किए गए ? राव साहब के एक वरिष्ठ मंत्री ने मुझे भी धमकी दी। जब मैं ठाकुरजी के घर भोजन कर रहा था तो उन्होंने कहा ''आपको और आपके मित्र राव साहब को अब हम देख लेंगे।'' हुआ क्या ? वे खुद ही बाहर हो गए और राव साहब पूरे पांच साल सरकार चलाते रहे। संघ के लोग कहते रहे कि नरसिंहराव से बड़ा शातिर कौन हो सकता है ? उन्होंने बाबरी ढांचा जान-बूझकर टूटने दिया ताकि संघ और मंदिर-आंदोलन हमेषा के लिए बदनाम हो जाएं। इस बहाने उन्होंने भाजपा की राज्य-सरकारें भी भंग कर दीं। श्री नरसिंहराव पर मस्जिद तुड़वाने का आरोप वैसा ही है, जैसा यह कहना कि न्यूयार्क के ट्रेड टॉवर अमेरिका के यहूदियों ने गिरवाए या बेनज़ीर भुट्टों की हत्या आसिफ ज़रदारी ने करवाई! अफसोस इस बात का है कि ऐसी बे-सिरपैर की बातों को कांग्रेस के कुछ जिम्मेदार नेताओं ने भी प्रोत्साहित किया, खासतौर से राव साहब के पद से हटने के बाद। वे यह भूल गए कि उनकी यह कृतघ्नता राव साहब से ज्यादा खुद कांग्रेस को बहुत मंहगी पड़ेगी। आष्चर्य है कि आज की कांग्रेस भी राव साहब की भूमिका पर हकला रही है। नरसिंहरावजी की नीयत पर शक करना अपने महान लोकतंत्र की इज्जत को खटाई में डालना है।

(लेखक, प्रधानमंत्री नरसिंहराव के अभिन्न मित्र रहे हैं)

30.11.2009आगे पढ़ें के आगे यहाँ

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फड़फड़ाहट

अतुल अग्रवाल 'वॉयस ऑफ इंडिया' न्यूज़ चैनल में सीनियर एंकर और 'वीओआई राजस्थान' के हैड हैं। इसके पहले आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, डीडी न्यूज़ और न्यूज़24 में काम कर चुके हैं। अतुल अग्रवाल जी का यह लेख समस्त हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों और पाठकों को पढना चाहिए क्योंकि अतुल जी का लेखन बेहद सटीक और समाज की हित की बात करने वाला है तो हम आपके सामने अतुल जी का यह लेख प्रकाशित कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगा,इस लेख पर अपनी राय अवश्य भेजें:- 18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबा

Special Offers Newsletter

The Simple Golf Swing Get Your Hands On The "Simple Golf Swing" Training That Has Helped Thousands Of Golfers Improve Their Game–FREE! Get access to the Setup Chapter from the Golf Instruction System that has helped thousands of golfers drop strokes off their handicap. Read More .... Free Numerology Mini-Reading See Why The Shocking Truth In Your Numerology Chart Cannot Tell A Lie Read More .... Free 'Stop Divorce' Course Here you'll learn what to do if the love is gone, the 25 relationship killers and how to avoid letting them poison your relationship, and the double 'D's - discover what these are and how they can eat away at your marriage Read More .... How to get pregnant naturally I Thought I Was Infertile But Contrary To My Doctor's Prediction, I Got Pregnant Twice and Naturally Gave Birth To My Beautiful Healthy Children At Age 43, After Years of "Trying". You Can Too! Here's How Read More .... Professionally