Skip to main content

नव गीत: अवध तन,/मन राम हो... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

संजीव 'सलिल'


अवध तन,

मन राम हो...

*

आस्था सीता का

संशय का दशानन.

हरण करता है

न तुम चुपचाप हो.

बावरी मस्जिद

सुनहरा मृग- छलावा.

मिटाना इसको कहो

क्यों पाप हो?




उचित छल को जीत

छल से मौन रहना.

उचित करना काम

पर निष्काम हो.

अवध तन,

मन राम हो...

*

दगा के बदले

दगा ने दगा पाई.

बुराई से निबटती

यूँ ही बुराई.

चाहते हो तुम

मगर संभव न ऐसा-

बुराई के हाथ

पिटती हो बुराई.




जब दिखे अंधेर

तब मत देर करना

ढेर करना अनय

कुछ अंजाम हो.

अवध तन,

मन राम हो...

*

किया तुमने वह

लगा जो उचित तुमको.

ढहाया ढाँचा

मिटाया क्रूर भ्रम को.

आज फिर संकोच क्यों?

निर्द्वंद बोलो-

सफल कोशिश करी

हरने दीर्घ तम को.




सजा या ईनाम का

भय-लोभ क्यों हो?

फ़िक्र क्यों अनुकूल कुछ

या वाम हो?

अवध तन,

मन राम हो...

*

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर एवम समसामयिक गीत ---हार्दिक बधाई।
    हेमन्त कुमार

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा