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मट्ठे वाली शहजादी..

भैस चराते प्रेम हुआ था॥
मट्ठे वाली सहजादी से॥
दिल की अपने बात बताती॥
कहती थी हूँ काशी से॥
नैन थे सुंदर रूप राशीला॥
पैर बहुत पथराये थे॥
धुप छाव के सह करके ॥
वह अपनी लाज बचाई थी॥
शर्मीली वह आँखों वाली ॥
मेरे दिल को भाई थी॥
प्यार का हार दिया कंधे पर॥
मट्ठे खूब पिलाई थी॥
मई भी उसपर पागल हो गया॥
बिठा लिया आज़ादी से॥
भैस चराते प्रेम हुआ था.....................
मई भूल गया था ख्यालो में॥
घर के लोग जब आए थे॥
बाँध दिया मेरा हाथ पैर॥
उसे गली गली दौडाए थे॥
पता चला न शहजादी का॥
किस बिस्तर पर सोती होगी॥
या तो मेरे प्यार में पागल॥
आहे भर कर रोती होगी॥
आ जाओ हे मट्ठे वाली ॥
हम तुम्हे अपनाए गे॥
तुझे ढूढते तेरे पथ पर॥
काशी तक हम जायेगे॥
सब को मैंने त्याग दिया॥
अब मिलना है वैरागी से॥
भैस चराते प्रेम हुआ था॥
मट्ठे वाली सहजादी से॥
दिल की अपने बात बताती॥
कहती थी हूँ काशी से॥


मट्ठे वाली शहजादी..

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