हमके सूझे न डगारिया॥
बुढ़ाई बेरिया॥
दुई लैका दुइनव अल्गारेन॥
नइखे poochhe पानी का॥
गुजरा ज़माना याद करी हम॥
रोई अपने जवानी का॥
चार बात उपरा से देवे॥
समझे लागे आपन चेरिया॥
हमके सूझे न डगारिया॥
बुढ़ाई बेरिया॥
नाती पोता मुह लडावे॥
सुने न कौनव काम॥
देहिया कय पौरुष जाय चुका॥
अबतो लागल पुण्य विराम॥
उन्ही के मुहवा पे बोले॥
नन्कौना कय हमारे धेरिया॥
हमके सूझे न डगारिया॥
बुढ़ाई बेरिया॥
बुढ़ाई बेरिया॥
दुई लैका दुइनव अल्गारेन॥
नइखे poochhe पानी का॥
गुजरा ज़माना याद करी हम॥
रोई अपने जवानी का॥
चार बात उपरा से देवे॥
समझे लागे आपन चेरिया॥
हमके सूझे न डगारिया॥
बुढ़ाई बेरिया॥
नाती पोता मुह लडावे॥
सुने न कौनव काम॥
देहिया कय पौरुष जाय चुका॥
अबतो लागल पुण्य विराम॥
उन्ही के मुहवा पे बोले॥
नन्कौना कय हमारे धेरिया॥
हमके सूझे न डगारिया॥
बुढ़ाई बेरिया॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर