अब नयी उमंगें जाग गयी ॥
भ्रष्ट कपोलो की पंखुडिया॥
फ़िर धरती से भाग गयी॥
सब समझ गए है रूप तुम्हारा॥
कितना है भय भीत॥
सादे कुरते में छुपा के रखते॥
बेईमानी की भीत॥
तेरे बोली पर अब बंधू॥
सच्चाई की चाबी लग गयी॥
॥
तोड़ फोड़ करवा देते हो॥
जूता बाज़ी सभा में होती॥
खा गए जनता का हिस्सा॥
फ़िर पड़ती रकम है छोटी॥
ग़लत राह पे खड़े हुए हो॥
क्या जीवन में घाट भयी॥
भ्रष्ट कपोलो की पंखुडिया॥
फ़िर धरती से भाग गयी॥
सब समझ गए है रूप तुम्हारा॥
कितना है भय भीत॥
सादे कुरते में छुपा के रखते॥
बेईमानी की भीत॥
तेरे बोली पर अब बंधू॥
सच्चाई की चाबी लग गयी॥
॥
तोड़ फोड़ करवा देते हो॥
जूता बाज़ी सभा में होती॥
खा गए जनता का हिस्सा॥
फ़िर पड़ती रकम है छोटी॥
ग़लत राह पे खड़े हुए हो॥
क्या जीवन में घाट भयी॥
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर