हिंदी सबके मन बसी
आचार्य संजीव'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा
हिंदी भारत भूमि के, जन-गण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
हिंदी आटा माढिए, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत तेल ले, पूड़ी बने कमाल..
ईंट बने सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी ह्रदय प्रणम्य.
संस्कृत पाली प्राकृत, हिंदी उर्दू संग.
हर भाषा-बोली लगे, भव्य लिए निज रंग..
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबका स्नेह ही, हो लेखन का ध्येय..
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ अगणित रखें, मन में नेह-विवेक..
भाषा बोले कोई भी. किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर दूत प्रबुद्ध..
आचार्य संजीव'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा
हिंदी भारत भूमि के, जन-गण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
हिंदी आटा माढिए, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत तेल ले, पूड़ी बने कमाल..
ईंट बने सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी ह्रदय प्रणम्य.
संस्कृत पाली प्राकृत, हिंदी उर्दू संग.
हर भाषा-बोली लगे, भव्य लिए निज रंग..
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबका स्नेह ही, हो लेखन का ध्येय..
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ अगणित रखें, मन में नेह-विवेक..
भाषा बोले कोई भी. किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर दूत प्रबुद्ध..
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर