चितवन तेरी मार गयी॥
कंगाल बना गयी अरब पति को॥
सागर जैसी ममता को छोडा॥
ढूढ़ रहा हूँ नैन वती को॥
कोई कमी नही थी हमको॥
जो मांगू सो आता था॥
ऐसा तीर चलायी मुझपर॥
जो टाक tआक रहा हूँ॥
प्यार कली को॥
चेहरा बिल्कुल पीला पड़ गया॥
तन में बिल्कुल नही है जान॥
दिल तो बिल्कुल टूट गया है॥
लगता पागल केवल अनजान॥
इधर उधर मई ताक़ रहा hoo।
हेर रहा हूँ रूप वती को॥
कंगाल बना गयी अरब पति को॥
सागर जैसी ममता को छोडा॥
ढूढ़ रहा हूँ नैन वती को॥
कोई कमी नही थी हमको॥
जो मांगू सो आता था॥
ऐसा तीर चलायी मुझपर॥
जो टाक tआक रहा हूँ॥
प्यार कली को॥
चेहरा बिल्कुल पीला पड़ गया॥
तन में बिल्कुल नही है जान॥
दिल तो बिल्कुल टूट गया है॥
लगता पागल केवल अनजान॥
इधर उधर मई ताक़ रहा hoo।
हेर रहा हूँ रूप वती को॥
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--- संजय सेन सागर