छुआ -छूट न गवा गाँव से॥
न तो गय ठकुराई॥
देखत दशा बीत गय जिनगी॥
अब तो आय बुधायी॥
मन्दिर के अन्दर नीच जाती का॥
घुसे खातिर पावंदी बा॥
काम करत करिहाव चटक गय॥
मेहनत ताना कय मंदी बा॥
यह गवना माँ जीवन भर का॥
चालत रहे ठिठाई॥
मजदूरन का न मिले मजूरी॥
न तो मिले आनाज ॥
जब मागे मजदूरी आपन॥
सुने अनाप सनाप॥
पाजी बसा गाँव के अन्दर॥
ओनही कय चतुराई॥
न तो गय ठकुराई॥
देखत दशा बीत गय जिनगी॥
अब तो आय बुधायी॥
मन्दिर के अन्दर नीच जाती का॥
घुसे खातिर पावंदी बा॥
काम करत करिहाव चटक गय॥
मेहनत ताना कय मंदी बा॥
यह गवना माँ जीवन भर का॥
चालत रहे ठिठाई॥
मजदूरन का न मिले मजूरी॥
न तो मिले आनाज ॥
जब मागे मजदूरी आपन॥
सुने अनाप सनाप॥
पाजी बसा गाँव के अन्दर॥
ओनही कय चतुराई॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर