माई जब बुद्हाय गयी॥
नाकन चना चबवाय दिही॥
गाय भैस बिकवाय दिही॥
खेतन म दाँत गदाय दिही॥
जब देखा लरिकन का डाटे॥
जैसे कटही कुकुर अस लागे॥
हमरेव डंडा लगवान दिही॥
पेड म बन्धवाय दिही॥
एक बगल के काकी आयी॥
दुल्हिन का धमकाय दिही॥
तू दुत्कारत बातू बूढा का॥
इहे उमर तोह्रिव होए॥
फ़िर गाँव गाँव कहत फिरबू॥
हमरव पतोह डंडा चट्काइश॥
तब कहे दुल्हनिया नन्कौना कय॥
बूढा हमरे पगलाय गयी॥
इही खातिर समझाईस तोहका॥
आगे कय कुछ बनाय लिया॥
बूढा का संग मिलाय लिया॥
उनहू कय गोद दबाय दिया॥
खुली आँख जब बुहार कय॥
बूढा का संग मिलाय लिही॥
नाकन चना चबवाय दिही॥
माई जब बुद्हाय गयी॥
नाकन चना चबवाय दिही॥
नाकन चना चबवाय दिही॥
गाय भैस बिकवाय दिही॥
खेतन म दाँत गदाय दिही॥
जब देखा लरिकन का डाटे॥
जैसे कटही कुकुर अस लागे॥
हमरेव डंडा लगवान दिही॥
पेड म बन्धवाय दिही॥
एक बगल के काकी आयी॥
दुल्हिन का धमकाय दिही॥
तू दुत्कारत बातू बूढा का॥
इहे उमर तोह्रिव होए॥
फ़िर गाँव गाँव कहत फिरबू॥
हमरव पतोह डंडा चट्काइश॥
तब कहे दुल्हनिया नन्कौना कय॥
बूढा हमरे पगलाय गयी॥
इही खातिर समझाईस तोहका॥
आगे कय कुछ बनाय लिया॥
बूढा का संग मिलाय लिया॥
उनहू कय गोद दबाय दिया॥
खुली आँख जब बुहार कय॥
बूढा का संग मिलाय लिही॥
नाकन चना चबवाय दिही॥
माई जब बुद्हाय गयी॥
नाकन चना चबवाय दिही॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर