Skip to main content

डा श्याम गुप्त की कविता--प्लास्टिकासुर----

पंडित जी ने पत्रा पढा, और-
गणना करके बताया,
जजमान!,प्रभु के ,
नये अवतार का समय है आया ।

सुनकर, छोटी बिटिया बोली,
उसनेअपनी जिग्यासा की पिटारी यूं खोली;
महाराज़, हमतो बडों से यही सुनते आये हैं,
बचपन से यही गुनते आये हैं, कि--
प्रिथ्वी पर जब कोई असुर उत्पन्न होता है,
तो वह,ब्रह्मा,विष्णु या शिव-शम्भू के,
वरदान से ही सम्पन्न होता है।
हमें तो नहीं दिखता कोई असुर आज,
फ़िर अवतार की क्या आवश्यकता है, महाराज?

पन्डित जी सुनकर हड्बडाये, कसमसाये,
पत्रा बंद करके मन ही मन बुद बुदाये,
फ़िर,उत्तरीय कंधे पर डाल कर मुस्कुराये; बोले-
सच है बिटिया, यही तो होता है,
असुर, देव,दनुज़,नर,गन्धर्व की-
अति सुखाभिलाषा से ही उत्पन्न होता है।
प्रारम्भ में लोग ,उसके कौतुक को,
बाल-लीला समझकर प्रसन्न होते हैं।
युवावस्था मेंउसके आकर्षण में बंधकर,
उसे और प्रश्रय देते हैं।
वही जब प्रौढ होकर दुख देता है ,तो-
अपनी करनी को रोते हैं

आज भी मौजूद हैं अनेकों असुर,
जिनमें सबसे भयावह है-"प्लास्टिकासुर",
प्लास्टिक जिसने कैसे-कैसे सपने दिखाये थे,
दुनियां के कोने-कोने के लोग भरमाये थे।
बही बन गया है आज-
पर्यावरण का नासूर;
बडे-बडे तारकासुरों से भी भयावह है,
ये आज का प्लास्टिकासुर॥



Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा