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शिक्षक ,अभिवाभाक , बच्चे ---त्रिकोण ? एक व्यर्थ की बहस-

सितम्बर , शिक्षक दिवस पर हर जगह ,टीवी,अखवार,गोष्ठियों में --इस त्रिको पर बहस होरही है ; मेरी समझ से यह बाहर की बात है की आख़िर इन तीन महत्वपूर्ण -व्यक्तित्वों को त्रिकोण पर क्यों होना चाहिए ? तीनों को एक बिन्दु पर रक्खकर क्यों नहीं देखा जाता? बहस का तो कोई मुद्दा ही नहीं है । अधिकार कर्तव्यों केसमुचित निभाने पर मिलते हैं, बच्चों को अभी अपने कर्तव्यों का ही नहीं पता ,अभी किसी कार्य के लिए सक्षम नहीं ,तो उनके अधिकार कहाँ से आए? यह पश्चिमी -रिवाज़ है जो बच्चों को स्कूल में पिस्टल व गोली लाने व साथियों पर चलाने को प्रेरित करता है| पिताव शिक्षक पर मुकदमा को प्रेरित करता है।उन्हें अधिकार नहीं अच्छा मनुष्य बनने के लिए उचित शिक्षा ग्रहण करने दीजिये ,कराइए । हर वर्ष की भांति रटी-रटाई बातें,शिक्षक,पेरेंट्स के कर्तव्य व बच्चों के अधिकारों पर बहस से कुछ नहीं होगा । वस्तुतः होना यह चाहिए---
१-शिक्षक,अभिवावकों ,बच्चों को कर्तव्य,अधिकार आदि रटाने की बजाय , सभी को सिर्फ़ अच्छा इंसान बनाना चाहिए बाकी सारा काम स्वयं ही होजायगा।
२--५ वर्ष की आयु से कम कोई बच्चा स्कूल न भेजा जाय।
३- जूनियर कक्षाओं तक सारे स्कूल एक से ,एक श्रेणी के ,एक स्तर के होने चाहिए ,शुल्क व सुविधाएं भी समान होनी चाहिए। चाहे वे सरकारी हों या संस्थाओं के या व्यक्तिगत ।
---------देखिये फ़िर कितनी जल्दी सब सुधर जाता है।

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ग़ज़ल

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