काफी दिन पहले मेरी धर्मपत्नी द्वारा लिखित एक भजन आज आपको पढा रहा हूं आशा है आप सभी को पसंद आएगी। यह भजन मेरी पत्नी ने जन्माष्टमी पर लिखा था लेकिन कुछ व्यस्तता के चलते आज इसे आप सभी को पढवा रहा हूं
तू बन जा मेरी मात यशोदा
मैं कान्हा बन जाऊं
जा यमुना के तीरे मां
बंशी मधुर बजाऊं
इक छोटा सा बाग लगा दे
जहां झूमूं नाचू गाऊं
घर-घर जाकर माखन मिश्री
चुरा चुरा के खाऊं
इक छोटी सी राधा लादे
जिसके संग रास रचाऊं
तू ढूंढे मुझे वन उपवन
मैं पत्तों में छिप जाऊं
तू बन जा मेरी मात यशोदा
मैं कान्हा बन जाऊं
तू बन जा मेरी मात यशोदा
मैं कान्हा बन जाऊं
जा यमुना के तीरे मां
बंशी मधुर बजाऊं
इक छोटा सा बाग लगा दे
जहां झूमूं नाचू गाऊं
घर-घर जाकर माखन मिश्री
चुरा चुरा के खाऊं
इक छोटी सी राधा लादे
जिसके संग रास रचाऊं
तू ढूंढे मुझे वन उपवन
मैं पत्तों में छिप जाऊं
तू बन जा मेरी मात यशोदा
मैं कान्हा बन जाऊं
gahre bhav........bahut sundar likha hai ..........prabhu prem ko samarpit .
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