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लो क सं घ र्ष !: विधि के विधान की कारा


तोड़ना नही सम्भव है,
विधि के विधान की कारा
अपराजेय शक्ति है कलि की,
पाकर अवलंब तुम्हारा

श्रृंखला कठिन नियमो की,
विधना भी मुक्त नही है
वरदान कवच से धरणी ,
अभिशापित है यक्त नही है

हो अजेय शक्ति नतमस्तक ,
पौरुष बल ग्राह्य नही है
तप संयम मुक्ति विजय श्री ,
रोदन ही भाग्य नही है

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा