लेखक के तन में बसा शब्दों का भण्डार॥
उठे लेखनी जब जबतब देता उपहार॥
तब देता उपहार शब्द को हार पिन्हाता॥
उसके लिखे कवित्र को जब का प्राणी गाता॥
शब्द सुरीले सजा कर रखता शब्दों का मेल॥
कभी कभी ले बिछड़ जाय तो होता बड़ा झमेल॥
होता नया झमेल जसवंत का पत्ता साफ़॥
लिखने में कोई त्रुटी हुयी हो कर देना ॥
भैया माफ़...
उठे लेखनी जब जबतब देता उपहार॥
तब देता उपहार शब्द को हार पिन्हाता॥
उसके लिखे कवित्र को जब का प्राणी गाता॥
शब्द सुरीले सजा कर रखता शब्दों का मेल॥
कभी कभी ले बिछड़ जाय तो होता बड़ा झमेल॥
होता नया झमेल जसवंत का पत्ता साफ़॥
लिखने में कोई त्रुटी हुयी हो कर देना ॥
भैया माफ़...
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर